
राज अब मजबूरी भी, जरूरी भी... उद्धव के सामने आखिरी किला बचाने की चुनौती
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महाराष्ट्र में बीएमसी चुनाव की बिसात बिछाई जाने लगी है. उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के मिलकर चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव हार के बाद बीएमसी आखिरी किला उद्धव ठाकरे का माना जा रहा है. ऐसे में देखना है कि क्या कमाल दिखा पाते हैं?
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद अब बारी 74 हज़ार करोड़ रुपए के बजट वाली बीएमसी चुनाव की है. आरक्षण प्रक्रिया पूरी होने के बाद सभी दलों ने बीएमसी के चुनाव की मोर्चाबंदी शुरू कर दी है. 1996 से बीएमसी पर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना का कब्ज़ा है. ऐसे में उद्धव के सामने अपना आखिरी किला बचाए रखने की चुनौती है, तो महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज़ होने के बाद से बीजेपी की नज़र बीएमसी पर है.
बीएमसी की 227 पार्षद सीटें हैं, मेयर बनाने के लिए 114 सीटों की जरूरत है. बीजेपी ने महाराष्ट्र की सत्ता अपने नाम करने के बाद से ही अब नज़र मुंबई में अपने सियासी दबदबे को बनाने पर लगाई है. बीएमसी पर उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) का प्रभाव है, जिसे कमजोर करने की नहीं, बल्कि अपने नाम करने की कवायद में बीजेपी जुटी है.
2024 के विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद से महाराष्ट्र के सियासी समीकरण पूरी तरह से बदल गए हैं. उद्धव ठाकरे के लिए अपने आखिरी किले बीएमसी को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है. ऐसे में उद्धव ठाकरे अपने चचेरे भाई राज ठाकरे के साथ मिलकर बीएमसी चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. ऐसे में क्या ठाकरे बंधु अपना राजनीतिक वर्चस्व को बचाकर रख पाएंगे?
बीएमसी चुनाव की बिछ रही बिसात
2017 में आखिरी बार बीएमसी का चुनाव हुआ था, जिसमें शिवसेना सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. इस लिहाज से 2022 में बीएमसी का चुनाव हो जाना चाहिए था, लेकिन आरक्षण का मामला अदालत में होने के चलते अधर में लटका हुआ था. अब रास्ता साफ हो गया है और 11 नवंबर को बीएमसी के वार्ड पार्षद सीटों का आरक्षण भी जारी हो चुका है.
227 सीटों वाली बीएमसी की 114 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की गई हैं. इसके अलावा एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय के लिए आरक्षित कर दी गई हैं. बीएमसी की 15 सीट एससी के लिए आरक्षित की गई, जिसमें 8 सीटें महिलाओं के लिए रिज़र्व हैं.

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