
मिशन बिहार के 'संकटमोचक' बने धर्मेंद्र प्रधान, चिराग को मनाने और NDA में सीट बंटवारे के पीछे की कहानी
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बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर NDA में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय हो गया है. इसमें बीजेपी 101, जेडीयू 101, चिराग की पार्टी 29, मांझी की पार्टी 6 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. सीट बंटवारे में धर्मेंद्र प्रधान की भूमिका बेहद अहम रही है. दिल्ली में देर रात चली बैठकों में धर्मेंद्र प्रधान ने चिराग पासवान और अन्य सहयोगियों के बीच सहमति बनवाई.
चुनाव आयोग ने जैसे ही बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान किया, पटना में राजनीतिक हलचल तेज हो गई थी. सबसे पहला मुद्दा उठा- NDA में सीटों के बंटवारा का. इस पूरी कवायद के केंद्र में थे बीजेपी के बिहार प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान और लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) प्रमुख नेता चिराग पासवान.
चुनाव अधिसूचना की स्याही सूखी भी नहीं थी कि चिराग पासवान के खेमे ने बीजेपी पर ज़्यादा सीटों के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया. एलजेपी (R) के एक वरिष्ठ नेता ने मज़ाकिया लहजे में कहा था कि हमारा लकी नंबर 9 है, इसलिए हम उन सीटों पर चुनाव लड़ेंगे जिनका अंक 9 है. ये बयान आत्मविश्वास और सोच-समझकर लिए गए फैसलों की ओर इशारा करता है.
वहीं, अपनी संयमित बातचीत शैली के लिए जाने जाने वाले धर्मेंद्र प्रधान ने एनडीए के सहयोगियों के साथ कई बार विचार-विमर्श किया, लेकिन चिराग तक पहुंचना मुश्किल साबित हुआ. एलजेपी (आर) 40 से ज़्यादा सीटों की मांग करते हुए अपनी ज़िद पर अड़ गई.
कई दौर की बातचीत के बाद धर्मेंद्र प्रधान और भाजपा महासचिव विनोद तावड़े गतिरोध तोड़ने के लिए चिराग पासवान के आवास पर गए. हालांकि बैठक बेनतीजा रही. कुछ ही घंटों में चिराग ने अपने करीबी सांसद अरुण भारती को सीटों पर बातचीत के लिए आधिकारिक वार्ताकार नियुक्त कर दिया. ये कदम दोनों दलों के बीच बढ़ते तनाव का संकेत माना गया.
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