मंडल 2.0: क्या 1990 के दशक की तरह फिर राजनीति बदलने वाली साबित होगी बिहार जातीय जनगणना रिपोर्ट?
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बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने 2024 के चुनाव से ठीक पहले सोमवार को जाति सर्वे के आंकड़े जारी किए हैं. कहा जा रहा है कि अन्य राज्यों में भी इसी तरह की जाति आधारित जनगणना की मांग जोर पकड़ सकती है. विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A का यह एक प्रमुख चुनावी एजेंडा भी माना जा रहा है. हिंदी पट्टी के राज्यों में जहां जाति की राजनीति एक प्रमुख भूमिका निभाती है, वहां आगामी चुनावों में बड़ा मुद्दा बन सकता है.
बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने सोमवार को जातीय जनगणना सर्वे के आंकड़े जारी कर दिए हैं. इस तरह की जनगणना कराने वाला बिहार, देश का पहला राज्य बन गया है. जातीय जनगणना रिपोर्ट को मंडल रिपोर्ट 2.0 कहा जा रहा है. देश में पिछड़ी जातियों के आरक्षण के लिए 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू की गई थीं. अब 33 साल बाद एक बार फिर जातीय जनगणना से जुड़ी रिपोर्ट चर्चा में आई है. इस रिपोर्ट के आने के बाद सियासत भी गरमा गई है. हम आपको बताएंगे कि मंडल आयोग की उस रिपोर्ट में क्या था और कितना बवाल मचा था? इसकी पूरी कहानी...
कांग्रेस समेत अन्य दलों ने ओबीसी और सामाजिक न्याय का कार्ड खेलने की तैयारी की है. वहीं, बीजेपी नेता ने इस रिपोर्ट को भ्रामक बताया है. माना जा रहा है कि बीजेपी पर भी केंद्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना कराए जाने का दबाव बढ़ रहा है. राजनीतिक गलियारों में कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार ने 2024 के चुनाव से ठीक पहले ट्रम्प कार्ड खेला है. महागठबंधन सरकार ने मंडल कमीशन के दौर के बाद ओबीसी सियासत को गरमाने का नया रास्ता दे दिया है. बीजेपी ओबीसी मोर्चे को भी तगड़ी टक्कर दी गई है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी अपने इरादे साफ कर दिए हैं. उन्होंने 'जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी हिस्सेदारी' का नारा बुलंद किया है.
'देश में 92 साल पुराने जातिगत आंकड़े'
बता दें कि देश में आखिरी बार साल 1931 में जातीय जनगणना के आंकड़े जारी हुए थे. हालांकि, 10 साल बाद यानी 1941 में भी जातीय जनगणना हुई, लेकिन आंकड़े सावर्जनिक नहीं किए गए थे. यानी देश में भी जो सरकारी योजनाएं संचालित हो रही हैं, वे 1931 की जातीय जनगणना के आधार पर लागू हो रही हैं. करीब 92 साल पुराने आंकड़े के मुताबिक, देश में 52 फीसदी ओबीसी समुदाय है. वहीं, आजादी के बाद 1951 में जातिगत जनगणना की मांग उठी तो तत्कालीन सरकार ने यह कहकर खारिज कर दिया था कि इससे समाज का ताना बाना बिगड़ सकता है. तब से सरकार ने जातिगत जनगणना के फैसले से परहेज किया.
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'पिछड़ी जातियों के लिए गठित हुआ था मंडल कमीशन'
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