
भारत में नकली देश के नाम पर सालों से चल रहा था फर्जी दूतावास, क्यों ऐसे गड़बड़झाले को पकड़ना मुश्किल हो जाता है?
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उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में फेक दूतावास का खुलासा हुआ है. स्पेशल टास्क फोर्स ने मंगलवार को छापा मारकर तथाकथित राजनयिक हर्षवर्धन जैन को अरेस्ट किया. आरोपी के पास से फर्जी झंडे, मोहर के अलावा वो सारे तामझाम निकले, जो किसी पर भी रुआब जमाने के लिए काफी हों. ऐन दिल्ली से सटा होने के बावजूद कई सालों तक ये नकली दूतावास चलता रहा.
गाजियाबाद की पॉश कॉलोनी में एक शख्स हर्षवर्धन जैन नकली एंबेसी चलाता पकड़ा गया. वो खुद को वेस्टार्कटिका का डिप्लोमेट बताता था. स्पेशल टास्क फोर्स ने अरेस्ट के दौरान पाया कि उसने दूतावास के नाम पर नकली मोहरें, फ्लैग और नकली नंबर प्लेट वाली गाड़ियां भी रखी हुई थीं ताकि किसी को शक न हो.
फिलहाल जांच चल रही है, लेकिन इस बीच ये बात भी आती है कि क्या सिस्टम को बायपास कर दूतावास जैसी संस्था भी बनाई जा सकती है? क्या किसी देश में दूतावास खोलने के नियम नहीं, या फिर खुलने के बाद उसकी जांच नहीं होती? और जब नकली पासपोर्ट जैसी चीजें पकड़ में आ जाती हैं तो पूरा का पूरा फर्जी दूतावास कैसे टिका रह गया?
पहले जानते चलें आरोप की मायावी दुनिया के बारे में. हर्षवर्धन जैन खुद को वेस्टार्कटिका का कॉन्सुलेट जनरल बताता था. छापा पड़ने से कुछ दिन पहले ही सोशल मीडिया अकाउंट पर क्लेम किया गया कि आरोपी साल 2017 से कान्सुलेट चला रहा है और लगातार चैरिटी करता है. महंगी कारों पर फेक डिप्लोमेटिक नंबरों की वजह से जैन लगातार सिक्योरिटी चेक से बचता रहा.
क्या है वेस्टार्कटिका यह एक माइक्रोनेशन है, यानी देश का एक फलसफा, जिसमें असल कुछ भी नहीं होता. साल 2001 में एक अमेरिकी नागरिक ने अंटार्कटिका के एक कोने को अपना देश बनाने का दावा किया और नाम दिया- वेस्टार्कटिका. लेकिन यूनाइटेड नेशन्स समेत भारत के लिए ये कोई देश नहीं. जैन ने इसी क्लेम का फायदा उठाते हुए खुद को वेस्टार्कटिका का राजनयिक घोषित कर दिया.
खुद को जेनुइन दिखाने के लिए आरोपी ने सारे खटराग किए. पॉश गाड़ियों पर डिप्लोमेटिक कॉर्प्स (डीसी) की नंबर प्लेट ली गई. गाजियाबाद स्थित घर पर फेक फॉरेन फ्लैग्स लगे हुए थे. फेक आईडी, लेटरहेड के अलावा लोग झांसे में रहें, इसके लिए उसने पीएम और राष्ट्रपति के साथ मॉर्फ्ड फोटो भी लगा रखी थी. शुरुआती जांच में माना जा रहा है कि इस तथाकथित एंबेसी के जरिए जैन कई आर्थिक गड़बड़ियां कर रहा था.
जांच एजेंसियों को कैसे पता लगा न्यूज18 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश एसटीएफ को किसी ने सूचना दी थी कि मामला संदिग्ध है. इसके बाद मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स में जांच हुई, जहां पता लगा वेस्टार्कटिका नाम से कोई देश ही लिस्ट में नहीं. इसके बाद छापेमारी में बाकी जानकारियां भी सामने आईं. जैन का मामला पहला नहीं. पहले भी ऐसा हो चुका है कि फर्जी दूतावास न सिर्फ खुले, बल्कि सालों तक बेरोक-टोक चलते रहे. उन्हें पहचानने में जांच एजेंसियों को सालोंसाल लगे.

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