
बलि की बेटी, कंस की धाय मां और एक डाकिनी... कहानी पूतना की जिसने कान्हा को पिलाया था दूध
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पूतना कंस की धाय नहीं बल्कि बहन थी. इसका विवाह घटोदर राक्षस के साथ हुआ था. आदि पुराण पूतना को कैतवी राक्षस की पुत्री और कंस की पत्नी की सखी भी बताता है. इसी की एक कथा ऐसी भी है कि बहुत काल पहले पूतना कालभीरु ऋषि की कन्या चारुमती थी.
मथुरा में यमुना पार स्थित गोकुल गांव आज भी श्रीकृष्ण की बाललीला का साक्षी है. यहां कई पुराने मंदिर बने हुए हैं जिनकी प्राचीनता और स्थापत्य का दावा स्थानीय लोक करते हैं. इन्हीं में जहां नंदबाबा का घर बताया जाता है, उससे ही थोड़ी दूर पर एक पवित्र स्थान भी बना हुआ है, जिसे स्थानीय लोग 'पूतना मारी' कहते हैं. मान्यता है कि नवजात कृष्ण ने मात्र दो महीने की आयु में ही इस स्थान पर कंस का सबसे पहला प्राणघातक हमला विफल किया था. यहां उन्होंने कंस की भेजी हुई एक भयानक राक्षसी पूतना का वध किया था.
पूतना एक मायावी, रूप बदलने में माहिर, घातिनी शक्तियों वाली और विषकन्या-गुप्तचरी विधा में प्रवीण राक्षसी थी. पुराणों में ऐसी मायावी स्त्रियों को डाकिनी कहा जाता है. डाकिनी तंत्र विद्या में सिद्ध होती हैं और वह किसी भी असंभव कार्य को संभव कर सकती हैं. दुर्गा सप्तशती में डाकिनी-शाकिनी, मालिका आदि विद्या का जिक्र आता है. गोकुल स्थित पूतना मारी स्थान से मिट्टी-भभूत ले आने की परंपरा है. इससे बच्चों को बुरे सपने नहीं आते और अंधेरे से डर नहीं लगता है. ब्रज की महिलाएं इससे बच्चों की नजर भी उतारती हैं.
कृष्ण जन्म से चिंतित हुआ कंस एक सामान्य कथा जो सभी जानते हैं वह कुछ यूं है कि, कंस को यह पता चल गया कि उसका काल सुरक्षित गोकुल पहुंचा दिया गया है, लेकिन वह किसके घर है यह उसे ठीक-ठीक नहीं पता था. कंस ने अपने सैनिकों और गुप्तचरों को यह पता लगाने भेजा भी कि किसके घर में बालक के जन्म की खुशियां मनाई जा रही हैं. गुप्तचरों ने पूरे गोकुल में 16 ऐसे घर बताए जहां चमत्कार वाली रात के आसपास बच्चों ने जन्म लिया था. इसलिए कंस ठीक से यह फैसला नहीं कर सका कि आखिर उसका शत्रु उनमें से कौन सा वाला है.
कंस ने पूतना को दिया था कृष्ण वध का आदेश
परेशान कंस ने अपनी धाय पूतना को बुलवाया. पूतना को कृष्ण को खोजकर मार देने का आदेश दिया. तब पूतना ने सलाह दी कि ऐसे तो पता नहीं कि इनमें से आपका काल कौन है, मैं सारे ही शिशुओं को मार डालती हूं. इस तरह पूतना ने वेश बदलकर एक गोपी मनिहारिन का रूप बना लिया और बड़ी सुंदर-मतवाली चाल चलते हुए गोकुल में घूमने लगी. मौका देखकर वह नन्हें शिशुओं को अपने विष लगे स्तन से दूध पिलाकर उन्हें मार डालती और फिर अगले घर की ओर बढ़ जाती.
इसी तरह वह नंदबाबा के घर पहुंची. यहां भी मौका देखकर और यशोदा माता से आंख बचाकर वह उनके घर में घुस गई और नन्हें कान्हा को पालने से उठा लिया और एकांत जगह में जाकर उन्हें भी जहर लगे स्तन से दूध पिलाने लगी. श्रीकृष्ण ने दूध पीने के बहाने पूतना के प्राण ही खींच लिए और वह परलोक को सिधार गई. यह एक प्रचलित कहानी है और भागवत कथा में भी इसका वर्णन इसी रूप में है.

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