
बंदा सिंह बहादुर: जिन्होंने मुग़लों से जम कर लोहा लिया था
BBC
सिख इतिहास में सिख गुरुओं के बाद बंदा सिंह बहादुर का नाम बहुत इज़्ज़त से लिया जाता है. इस योद्धा ने शक्तिशाली मुग़ल सेना के दांत खट्टे कर दिए. बंदा सिंह बहादुर की 305वीं पुण्यतिथि पर उनके जीवन पर नज़र दौड़ा रहे हैं रेहान फ़ज़ल विवेचना में.
बंदा सिंह बहादुर के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपनी ज़िदगी विपरीत दिशा में जी. किशोरावस्था में संत बनने वाले बंदा अपनी ज़िदगी के बाद के सालों में सांसारिक जीवन की तरफ़ लौटे. ऐसे लोग कम देखने में आए हैं जो बहुत कम समय में हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अध्येता से एक बहादुर योद्धा और एक काबिल नेता में तब्दील हो गए हों. सिख रिसर्च इंस्टीट्यूट, टेक्साज़ के सह संस्थापक हरिंदर सिंह लिखते हैं, "38 वर्ष का होते होते हम बंदा सिंह बहादुर के जीवन की दो पराकाष्ठाओं को देखते हैं. गुरु गोबिंद सिंह से मुलाक़ात से पहले वो वैष्णव और शैव परंपराओं का पालन कर रहे थे." "लेकिन उसके बाद उन्होंने सैनिक प्रशिक्षण, हथियारों और सेना के बिना 2500 किलोमीटर का सफ़र तय किया और 20 महीने के अंदर सरहिंद पर क़ब्ज़ा कर खालसा राज की स्थापना की." बंदा सिंह बहादुर का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 को राजौरी में हुआ था. बहुत कम उम्र में वो घर छोड़ कर बैरागी हो गए और उन्हें माधोदास बैरागी के नाम से जाना जाने लगा.More Related News
