पहाड़ों पर बसा वो पाकिस्तानी समुदाय, जहां शादीशुदा औरतें भी चुन सकती हैं नया साथी, शराब से होता है वेलकम
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पाकिस्तान से अल्पसंख्यक लड़कियों से जबरन शादी और धर्म परिवर्तन की खबरें आती रहती हैं. इसके बीच वहां एक समुदाय ऐसा है, जिसकी महिलाएं न सिर्फ मनपसंद साथी चुनती हैं, बल्कि आगे चलकर कोई दूसरा पसंद आने पर उसे छोड़ भी देती हैं. औरत जहां जाएगी. वहां आटे की माला पहनाकर शराब परोसी जाएगी. अब वो नए घर का हिस्सा है.
पढ़ने-सुनने में बेहद आधुनिक और अलग लगता ये तबका खैबर पख्तूनख्वा की चित्राल घाटी में फैला हुआ है, जो चारों तरफ हिंदू-कुश की पहाड़ियों से घिरा है. अनुमान है कि दुर्गम पहाड़ों से घिरा होने के कारण ही लगभग 4 हजार की आबादी वाले कलाशा समुदाय की सभ्यता-मान्यताएं अब तक सुरक्षित हैं, वरना कब की पाकिस्तानी सख्ती का शिकार हो जातीं.
हिंदु कुश की भी हैं ढेरों कहानियां सिकंदर जब दुनिया जीतने निकला तो इस इलाके में भी ठहरा और जीतकर आगे निकल गया. तब इसे कौकासोश इन्दिकौश कहा जाने लगा, यूनानी में जिसका मतलब है हिंदुस्तानी पर्वत. कलाशा जनजाति को कई इतिहासकार सिकंदर का वंशज मानते हैं, जबकि कई हिंदुस्तानी मूल का.
11वीं सदी के अंत में इन हिंदुओं को काफिर कहते हुए खूब मारकाट मचाई गई. ज्यादातर समुदायों ने धर्म बदल लिया. यही वो समय था, जब इन पहाड़ों को हिंदु-कुश नाम मिला, यानी हिंदुओं की हत्या करने वाला. सबसे पहले ये नाम मुस्लिम घुमक्कड़ इब्न बतूता ने दिया, जिसके बाद यही चलन में आ गया.
अलग हैं मान्यताएं धर्म परिवर्तन के दबाव के बीच भी कलाशा जनजाति के कुछ लोग बचे रह गए और लगभग उन्हीं देवी-देवताओं और रीति-रिवाजों को मानते रहे, जो उनके पूर्वजों से उन्हें मिला था. जैसे पाकिस्तान में रहने के बाद भी ये लोग खुलकर मूर्तिपूजा करते हैं. शिव और इंद्र को मानते हैं. साथ ही यहां यम देव की पूजा भी होती है. कबीलाई मान्यता के मुताबिक जान लेने वाले यही देवता प्राण भी फूंकते हैं. तो किसी की मौत को भी कलाशा उत्सव की तरह देखते हैं और रोने की बजाए नाचते-गाते हैं.
अभी चल रहा है सबसे बड़ा पर्व दिसंबर का यही समय कलाशा समुदाय के सबसे बड़े त्योहार चाओमास का समय है. इस दौरान लोग अपने शरीर और आत्मा की शुद्धि करते हैं. ये शुद्धि मुश्किल व्रत से नहीं, बल्कि नाच-गाने और बढ़िया भोजन से आती है. पहाड़ों पर आग जलाई जाती है, जिसके चारों ओर इकट्ठे होकर लोग नाचते और ऊपरवाले से खुद को शुद्ध करने की प्रार्थना भी करते हैं. इस दौरान मेला भी लगता है और भेड़-बकरियों की बलि भी दी जाती है, लेकिन त्योहार का सबसे अहम हिस्सा संगीत और मेल-मुलाकातें हैं.
इस तरह होगी मेल-मुलाकात लगभग दो हफ्ते तक चलने वाले पर्व में महिलाएं नाचेंगी-गाएंगी, शराब से मिलता-जुलता पेय भी लेंगी और अगर कोई दूसरा पुरुष पसंद आ जाए तो त्योहार खत्म होते ही पति से कहकर उसके साथ चली जाएंगी. ये भी हो सकता है कि कुछ दिनों बाद मेल न बैठने पर दोबारा लौट आएं. तब पति बिना ना-नुकर उसे स्वीकार कर लेगा. या अगर वो दूसरी शादी कर लेता है तो पूर्व-पत्नी अगले साल त्योहार का इंतजार करेगी ताकि नया साथी खोजा जा सके.