तमिलनाडु में मंडल मसीहा वीपी सिंह की मूर्ति के बहाने अखिलेश-स्टालिन ने शुरू की तीसरे मोर्चे की तैयारी!
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देश के करीब हर पार्टी में पिछड़ी जाति के वोटों की मारामारी चल रही है. पर पिछड़ों का हक दिलाने के लिए मंडल कमीशन लागू करने वाले पूर्व पीएम स्वर्गीय वीपी सिंह को कोई याद नहीं करता है. तमिलनाडु में उनकी आदमकद प्रतिमा का आज अनावरण है. अनावरण कार्यक्रम में केवल अखिलेश यादव को ही आमंत्रित किया गया है. क्या कारण है कि पिछड़ों की राजनीति करने वाले इंडिया गठबंधन के अन्य नेताओं को द्रमुक पार्टी ने याद नहीं किया?
तमिलनाडु सरकार का यह विज्ञापन गौर से देखिए. देश के कई महत्वपूर्ण अखबारों में छपे इस विज्ञापन का सार तत्व यह है कि पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की स्टेच्यू तमिलनाडु में लग रही है. 26 नवंबर 2008 को पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने दुनिया को अलविदा कहा था. ठीक इसी दिन मुंबई पर आतंकी हमला हुआ था. कारण जो भी हो विश्वनाथ प्रताप सिंह की जयंती या पुण्यतिथि कभी मीडिया के लिए या राजनीतिक दलों के लिए कोई इवेंट नहीं रहा. विश्वनाथ प्रताप सिंह के होमटाउन प्रयागराज के बाहर देश में उनकी पहली आदमकद प्रतिमा लग रही है. इसी साल अप्रैल महीने में ही तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने यह मूर्ति लगवाने की घोषणा की थी.देश भर में तमाम राजनेताओं के स्टेच्यू लगते रहे हैं. मगर वीपी सिंह की मूर्ति चर्चा में है.
नीतीश और तेजस्वी को क्यों नहीं बुलाया
वीपी सिंह को भारतीय राजनीति में मंडल मसीहा के नाम से जाना जाता है.मंडल कमीशन की जिस रिपोर्ट को कांग्रेस सरकार करीब 10 सालों से दबाए बैठी थी , उसे वीपी सिंह ने सरकार बनते ही लागू कर दिया था. इसलिए पिछड़ों के मसीहा के रूप में उन्हें याद किया जाता है.यही कारण स्टालिन उन्हें सामाजिक न्याय के हीरों के रूप में तमिलनाडु में सम्मान देना चाहते हैं. पर स्टालिन ने इस मंडल मसीहा की मूर्ति के अनावरण में समाजवादी पार्टी के मुखिया और उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम अखिलेश यादव को ही क्यों बुलाया ? सवाल तो उठेंगे ही. आखिर जब प्रदेश में स्टालिन ने अपने पिता और प्रदेश के पूर्व सीएम करुणानिधि की मूर्ती का अनानरण कराया था तो उसमें देश भर के नेताओं को इन्वाइट किया था. अब स्टालिन इंडिया गठबंधन के सक्रिय सदस्य हैं. कम से कम गठबंधन के नेताओं को तो उन्हें बुलाना ही चाहिए था. पर ऐसा नहीं हुआ, क्यों? आखिर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव भी तो पिछड़ों की ही राजनीति कर रहे हैं. नीतीश और तेजस्वी के प्रयासों से ही पिछड़ी जाति के लोगों को न्याय दिलाने की खातिर देश में पहली बार जातिगत जनगणना हुई है. इसके साथ ही पिछड़ा-पिछड़ा की रट लगाने वाले राहुल गांधी भी मंडल की राजनीति के नए सितारे बनने की कोशिश कर रहे हैं. आखिर इन नेताओं का नाम गेस्ट लिस्ट में क्यों नहीं हैं? सवाल तो उठेंगे ही?
क्या तीसरे मोर्चे की है तैयारी?
अखिलेश यादव को निमंत्रण ने अटकलें लगाईं कि स्टालिन राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य में द्रमुक के लिए एक बड़ी भूमिका की तलाश कर रहे थे. यादव के अलावा, दिवंगत प्रधानमंत्री के परिवार के सदस्य भी इस कार्यक्रम में शामिल होंगे. 20 अप्रैल को, स्टालिन ने राज्य विधानसभा में घोषणा की थी कि सामाजिक न्याय में उनके योगदान के लिए तमिल लोगों की कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में सिंह की प्रतिमा चेन्नई में स्थापित की जाएगी. यह घोषणा द्रमुक द्वारा देश भर के 19 विपक्षी नेताओं के साथ एक राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन की मेजबानी के कुछ सप्ताह बाद आई.
यह बात अब कोई ढंकी छुपी नहीं है कि अखिलेश यादव का इंडिया गठबंधन से मोहभंग हो चुका है. मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीछ हुई हार्ड टॉक इसका उदाहरण है.अखिलेश वैसे भी बहुत पहले से ही गैरकांग्रेसी तीसरा मोर्चा बनाने के फिराक में हैं. हमने अभी उन्हें तेलंगाना में बीआरएस का प्रचार करते देखा. इसके पहले भी बीआरएस की रैली में उन्होंने पहुंचकर संकेत दिया था कि वे एक अलग मोर्चा बना सकते हैं. भारतीय राजनीति में जैसी परिस्थितियां बन रही हैं उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, केसीआर, जगन मोहन मिलकर एक अलग गैरकांग्रेस-गैरभाजपा वाला गठबंधन बना सकते हैं. तो क्या यह समझा जाए कि इस तरह के गठबंधन के चर्चा में एमके स्टालिन भी शामिल हो सकते हैं. पत्रकार विनोद शर्मा का कहना है कि स्टालिन राष्ट्रीय राजनीति में एक बड़ी भूमिका निभाने के बारे में सोच सकते हैं. द्रमुक चुनाव के बाद की स्थिति को प्रभावित करना चाहती है. इंडिया गठबंधन के साथ कोई समस्या होने पर तीसरे मोर्चे के लिए द्वार खुल सकें. यही कारण है कि उन्होंने इस समारोह में अखिलेश यादव को आमंत्रित किया है क्योंकि अखिलेश के पास राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल (यूनाइटेड) के साथ 'तीसरे मोर्चे' का कार्ड भी है.
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