
ज्यादातर देशों के सालाना प्रदूषण से कहीं ज्यादा है रूस-यूक्रेन युद्ध में निकला धुआं, फिर क्यों इस पर चर्चा से बचते रहे देश?
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पर्यावरण पर काम कर रही एक इंटरनेशनल संस्था के मुताबिक, रूस-यूक्रेन जंग के पहले साल में इतना प्रदूषण हुआ, वह लगभग 175 देशों की सालाना कार्बन उत्सर्जन क्षमता से भी ज्यादा था. यानी इस लड़ाई में सिर्फ जान-माल का नुकसान नहीं हो रहा, बल्कि हर दिन के साथ क्लाइमेट पर संकट गहरा रहा है.
अक्सर त्योहार या किसी इवेंट के मौके पर होने वाले आतिशबाजी को लेकर एक बड़ा तबका नाराज रहता है. प्रदूषण का मुद्दा उठाया जाता है. चिंता किसी हद तक सही भी है, लेकिन यही फिक्र युद्ध की वजह से होने पर प्रदूषण पर एकदम गायब मिलती है. दो देशों की जंग में होने वाला पॉल्यूशन न केवल हवा, बल्कि मिट्टी को भी खराब कर रहा है. यहां तक कि रूस और यूक्रेन को ही लें तो उनकी लड़ाई से निकले धुएं ने बहुत सारे देशों के सालाना कार्बन उत्सर्जन को पार कर लिया.
शुरुआत मॉस्को और कीव से करते हैं. अक्सर सरकारें युद्ध में कैजुएलिटी की तो बात करती हैं, लेकिन पर्यावरण पर उसके नुकसान को नजरअंदाज कर दिया जाता है. बहुत सारी जानकारी गोपनीय रहती है, इसलिए रिसर्चर सही आंकड़े नहीं जुटा पाते. वे युद्ध प्रभावित इलाकों में जाकर आंकड़े भी नहीं ले पाते हैं. इसके बावजूद भी कुछ काम हो रहा है जो दिखाता है कि जंग में होने वाला प्रदूषण किस हद तक मारक है.
इनिशिएटिव ऑन ग्रीनहाउस गैस अकाउंटिंग ऑफ वॉर (IGGAW) एक रिसर्च समूह है, जिसे यूरोपियन क्लाइमेट फाउंडेशन के साथ-साथ जर्मनी और स्वीडन से भी सपोर्ट मिलता है. यह लड़ाइयों से होने वाले प्रदूषण पर काम करता है.
इसकी रिपोर्ट में कहा गया कि रूस-यूक्रेन युद्ध के पहले दो सालों में हुए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का असर इतना बड़ा था कि यह ग्लोबल स्तर पर छोटे और मध्यम स्तर के लगभग 175 देशों के वार्षिक उत्सर्जन से भी ज्यादा था. मतलब ऐसे देशों के कुल वार्षिक CO₂ उत्सर्जन को अलग-अलग देखा जाए तो केवल रूस और यूक्रेन में हुई सैन्य गतिविधियों की वजह से पैदा हुई गैसें कहीं ज्यादा रहीं.
रिपोर्ट के अनुसार, रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के पहले तीन सालों में लगभग 237 मिलियन टन कार्बन एमिशन हुआ. इसमें कई चीजें शामिल थीं. - सैन्य गतिविधियां जैसे टैंक, विमान, और अन्य सैन्य उपकरणों का उपयोग. - विस्फोट की वजह से शहरों, जंगलों और खेती की जमीन में लगी आग. - शरणार्थियों और विस्थापितों की आवाजाही से निकला धुआं.
अगर 175 छोटे-बड़े देशों को छोड़ दिया जाए तब भी यह उत्सर्जन ऑस्ट्रिया, हंगरी, चेक रिपब्लिक और स्लोवाकिया के जॉइंट सालाना कार्बन उत्सर्जन के बराबर है. युद्ध में कई और जहरीली गैसें भी निकलती हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग को और बढ़ा रही हैं.

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