
ज्ञानवापी मामले में उपासना क़ानून उल्लंघन के दावों पर सुप्रीम कोर्ट का जवाब - प्रेस रिव्यू
BBC
बीते लंबे समय से इस बात पर चर्चा हो रही है कि उपासना स्थल क़ानून के साल 1991 में आने के बाद अब मस्जिद में सर्वे कैसे हुआ? पढ़ें आज के अख़बारों की प्रमुख सुर्ख़ियां.
ज्ञानवापी मामले की जटिलता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि इस मामले की सुनवाई अब सिविल कोर्ट के बजाय ज़िला अदालत में होगी और इस मामले की सुनवाई उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा के अनुभवी और वरिष्ठ जज करेंगे.
अंग्रेज़ी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़ शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील हुज़ैफ़ा अहमदी ने कोर्ट के सामने दलील देते हुए कहा कि वाराणसी की अदालत ने जिस प्रक्रिया की शुरुआत की है वो साल 1991 में लाए गए उपासना स्थल कानून का उल्लंघन है.
इसके जवाब में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकान्त और जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने कहा कि किसी धार्मिक स्थान के चरित्र का पता लगाना इस क़ानून में मना नहीं है.
मंगलवार को कोर्ट ने कहा था कि ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज़ अदा करने और नमाज़ियों की संख्या पर कोई रोक नहीं होगी. साथ ही उस जगह को वाराणसी प्रशासन सुरक्षित रखे, जहाँ शिवलिंग मिलने का दावा किया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह स्थिति अभी भी बरकरार रखी जानी चाहिए.
अख़बार लिखता है कि अहमदी ने अपनी बात रखते हुए कहा मस्जिद के एक हिस्से को सील करना ही यथास्थिति को बदलना है जो बीते 500 सालों से चली आ रही है. और इससे मस्जिद का धार्मिक चरित्र बदला जा रहा है, ये उपासना अधिनियम 1991 के तहत प्रतिबंधित है.
