
जो भारत पाकिस्तान से चाहता है वही PAK तालिबान से... फिर जंग के खौफ में क्यों विदेश दौड़ पड़े मुनीर-शहबाज-शमशाद
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पाकिस्तान के बड़े सैन्य अधिकारियों और नेताओं की ये विदेश यात्राएं पड़ोसी मुल्क की बहु-स्तरीय कूटनीति और क्षेत्रीय समर्थन की खोज को दर्शाती हैं. ये यात्राएं ऐसे समय पर हो रही हैं जब अफगान-पाकिस्तान सीमा पर तनाव चरम पर है. सऊदी अरब के साथ पाकिस्तान ने सुरक्षा समझौता तो कर लिया है लेकिन अफगानिस्तान के साथ टकराव के दौरान तालिबान पर इसका कोई असर देखने को नहीं मिला और अफगान तालिबान ने बेखौफ सीमा पर गोले बरसाए. अब पाकिस्तान किसी भी बड़े संघर्ष या कूटनीतिक अलगाव से खुद को सुरक्षित रखना चाहता है.
पाकिस्तान का राजनीतिक नेतृत्व इन दिनों सऊदी अरब में है. प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ इस समय वे रियाद में Future Investment Initiative (FII9) सम्मेलन में भाग ले रहे हैं और सऊदी नेतृत्व के साथ कई द्विपक्षीय बैठकें भी कर रहे हैं. सऊदी अरब से ही कुछ सौ मील दूर जॉर्डन है जहां पाकिस्तान के आर्मी चीफ फील्ड मार्शल आसिम मुनीर डेरा डाले हैं. और दक्षिण एशिया में भारत के पड़ोस बांग्लादेश में पाकिस्तान मिलिट्री के नंबर-2 मिर्जा शमशाद बेग डिप्लोमेसी का खेल खेल रहे हैं.
इस इन तीनों अफसरों और नेताओं की नजरें इस्तांबुल में टिकी हुई है. जहां पाकिस्तान अपने रुठे पड़ोसी अफगानिस्तान को मनाने के लिए 2 दिनों से वार्ताएं कर रहे हैं. एक तरह से पाकिस्तान का टॉप लीडरशिप इस वक्त देश से बाहर है.
अक्तूबर 2025 में अफगानिस्तान-पाकिस्तान तनाव तब चरम पर पहुंच गया जब पाकिस्तान ने काबुल और कंधार में हवाई हमले किए. इसके जवाब में अफगान तालिबान ने सीमा पर पाकिस्तानी चौकियों पर हमला बोला. इससे दर्जनों सैनिक मारे गए.
आखिरकार कतर और तुर्की की मध्यस्थता से दोनों देशों के बीच नाजुक युद्धविराम हुआ.
लेकिन दोनों देशों के बीच तनाव अभी भी बना है और कभी भी युद्ध शुरू हो सकता है. तहरीक-ए-तालिबान ने 2025 में पाकिस्तान पर 600 से ज्यादा हमले किए. जो इस दशक का सबसे खतरनाक स्तर है.
यह संघर्ष पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डाल रहा है. इसलिए पाकिस्तान अफगानिस्तान से हर हाल में शांति चाहता है. क्योंकि सोवियत रूस, अमेरिका को नाको चने चबवा चुका तालिबान पाकिस्तान को तहस-नहस करना चाहता है.

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