'जोशीमठ में सबकुछ टूट गया, क्या संज्ञान ले रही है सरकार?', कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने उठाए सवाल
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कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा है कि सबकुछ जोशीमठ में टूट रहा है, मंदिर टूट रहे हैं, जोशीमठ देवस्थल है. लेकिन खबर क्या बनती है, कि मोदी जी जोशीमठ का संज्ञान लिया. पवन खेड़ा ने कहा कि जोशीमठ समस्या को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाए.
उत्तराखंड के जोशीमठ का मुद्दा इन दिनों चर्चा में है. केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार भी इस मुद्दे को गंभीरता से ले रही हैं. ऐसे में कांग्रेस पार्टी के नेता पवन खेड़ा ने इस मुद्दे पर बयान दिया है. पवन खेड़ा ने कहा है कि सबकुछ जोशीमठ में टूट रहा है, मंदिर टूट रहे हैं, जोशीमठ देवस्थल है. लेकिन खबर क्या बनती है, कि मोदी जी जोशीमठ का संज्ञान लिया.
उन्होंने सवाल उठाया, 'अरे सब टूट गया है तब क्या संज्ञान ले रहे हैं. चारधाम रेलवे परियोजना की कमेटी के अधिकारी ने इस्तीफा दे दिया, क्योंकि उनकी सड़कों को चौड़ा ना करने की चेतावनी को नजरअंदाज किया गया है.' पवन खेड़ा ने कहा कि जोशीमठ समस्या को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाए.
जोशीमठ पर अस्तित्व का संकट बता दें कि उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन धंसने की घटनाओं से लोगों में हड़कंप और डर का माहौल है. वहां जमीन फट रही है, करीब 603 घरों में दरारें आ चुकी हैं और जोशीमठ के लोग डरे हुए हैं. जमीन धंसने की घटनाओं के बाद चमोली प्रशासन हरकत में आ गया है. जिला प्रशासन और एसडीआरएफ की टीमों ने असुरक्षित घरों की पहचान शुरू कर दी है. टीमें जोशीमठ में भूस्खलन की घटनाओं में क्षतिग्रस्त हुए घरों पर अब रेड क्रॉस मार्क लगाकर घर के मालिकों को सुरक्षित स्थान पर जाने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे हैं.
603 घरों में आईं दरारें
जानकारी के मुताबिक जोशीमठ में अब तक 603 घरों में दरारें आ चुकी हैं. इनमें 100 से ज्यादा घर ऐसे हैं, जो कभी भी ढह सकते हैं. वहीं प्रशासन यहां से अब तक 65 परिवारों को सुरक्षित जगह भेज चुका है. बाकी लोगों को भी सुरक्षित जगह पर भेजने के प्रयास किए जा रहे हैं. वहीं जोशीमठ के बाद कर्णप्रयाग में भी जमीन दरकने की घटनाएं सामने आ लगी हैं. कर्णप्रयाग नगर पालिका के बहुगुणा नगर में मौजूद करीब 50 घरों में दरार आने लगी हैं.
सीएम धामी ने किया दौरा
‘जिस घर में कील लगाते जी दुखता था, उसकी दीवारें कभी भी धसक जाती हैं. आंखों के सामने दरार में गाय-गोरू समा गए. बरसात आए तो जमीन के नीचे पानी गड़गड़ाता है. घर में हम बुड्ढा-बुड्ढी ही हैं. गिरे तो यही छत हमारी कबर (कब्र) बन जाएगी.’ जिन पहाड़ों पर चढ़ते हुए दुख की सांस भी फूल जाए, शांतिदेवी वहां टूटे हुए घर को मुकुट की तरह सजाए हैं. आवाज रुआंसी होते-होते संभलती हुई.
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