
जब रूस में शाही कुत्तों पर फिजूलखर्ची ने दी जनता के गुस्से को हवा, कब-कब कुत्ते बने राजनीतिक तूफान का कारण?
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सुप्रीम कोर्ट ने स्ट्रे डॉग्स पर अपना पुराना आदेश वापस लेते हुए कहा कि टीकाकरण और नसबंदी के बाद उन्हें दोबारा अपनी जगह पर छोड़ दिया जाए. इस फैसले को लेकर दो धड़े हो चुके, जिसमें आम लोगों के साथ राजनेता भी शामिल हैं. कुत्ते दरअसल इतना संवेदनशील मसला हैं कि उन्हें लेकर कई बार राजनीतिक पासे भी उलट-पलट हो चुके.
स्ट्रे डॉग्स का मसला कोई छोटी-मोटी चीज नहीं. तमाम जरूरी लगने वाले मामलों को पीछे छोड़ते हुए हाल में देश की सर्वोच्च अदालत ने इनपर फैसला लिया और दबाव में उसमें संशोधन तक करना पड़ा. ये अकेला वाकया नहीं, और न ही हमारे देश तक सीमित है. कुत्तों की वजह से दुनियाभर की राजनीति में भूचाल आ चुके. रूस में शाही कुत्तों की ठाठ-बाट ने जनता को इतना भड़का दिया कि वो प्रोटेस्ट पर उतर आई थी.
रूसी राजनेताओं और उद्योगपतियों की शाही जिंदगी के किस्से चटकारे लेकर कहे-सुने जाते हैं लेकिन पुराने रूस की बात ही अलग थी. ये शाही साम्राज्य का दौर था. 19वीं सदी में यूएसएसआर बनने के ठीक पहले का. तब वहां जार का शासन था, जो मनमाने फैसले लेते और जनता के पैसों पर आलीशान जीवन जीते. यहां तक फिर भी ठीक था लेकिन हद तब हुई, जब यही शानोशौकत कुत्तों को मिलने लगी.
19वीं सदी के आखिर में वहां के जार निकोलस द्वितीय का शाही महल राजसी ठाठ के लिए ही नहीं, बल्कि फिजूलखर्ची के लिए भी बदनाम था. महल में रखे गए शाही कुत्तों पर जितना खर्च होता, वो लोगों की समझ से बाहर था. कुत्तों की देखभाल के लिए ट्रेंड नौकर रखे जाते. डॉग्स सोने-चांदी के बर्तनों में खाते. यहां तक कि उनके पहनने-सोने के लिए भी गद्दे और कपड़े यूरोप की महंगी दुकानों से मंगवाए जाते.
शाही परिवार तब अलेक्जेंडर पैलेस में रहता था. वहां एक डॉग किचन था, जहां हर कुत्ते की पसंद का खाना तैयार होता. निकोलस के बारे में अलग-अलग रिपोर्ट्स में मिलता है कि वे अपने दरबारियों को बुलाने के लिए कुत्तों का इस्तेमाल करते थे. डॉग्स ही सामंतों के कपड़े खींचकर इशारा देते कि उन्हें जार ने बुलाया है.
शाही कुत्तों की देखरेख तो हो रही थी, लेकिन इसके नाम पर दरबारी बड़ा भ्रष्टाचार भी मचाए हुए थे. ये राजशाही का आखिरी वक्त था. बुझते दिए की तरह लौ और लपलपाती हुई. हर कोई अपना घर भरने में मशगूल था. इसी दौरान वहां के गांव-देहात में अकाल फैला हुआ था. लोग भूखों मर रहे थे, जबकि शाही कुत्ते इंपोर्टेड खाना खा रहे थे.
दूसरी तरफ स्ट्रे डॉग्स के हाल बेहाल थे. खासकर सेंट पीटर्सबर्ग में आवारा कुत्तों को मारा जा रहा था. अगर कोई शख्स कुत्तों के साथ दिखाए दे तो उसपर जुर्माना भी लगता. ये शायद ऐसा था कि राजा और प्रजा एक जैसे शौक न रखें. रूसी अखबारों और मैगजीन्स में इस फिजूलखर्ची की खबरें छन-छनकर आतीं, जिससे जनता का गुस्सा बढ़ता गया.

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