जंग के बीच यूक्रेन पर मंडराया नया खतरा, मामूली जख्मों पर भी नहीं हो रहा दवाओं का असर
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रूस-यूक्रेन युद्ध में शांति वार्ता की सभी कोशिशें बेकार हो रही हैं. इस बीच एक और परेशान करने वाली खबर आ रही है कि यूक्रेन के बीमार और जख्मी लोगों पर दवाएं बेअसर होने लगी हैं. आनन-फानन में इस देश ने दवाओं की अपनी नीति में बदलाव किया, लेकिन अंदेशा जताया जा रहा है कि काफी देर न हो चुकी हो. सवाल ये भी है कि आखिर क्यों यूक्रेन में दवाएं काम नहीं कर रहीं?
यूक्रेन और रूस के बीच जंग छिड़े सालभर से ज्यादा समय हुआ. दोनों में से कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं, बल्कि युद्ध में दूसरे देश भी योगदान देने लगे हैं. इधर युद्ध-प्रभावित यूक्रेन में महंगाई, तबाही के बीच नया पैटर्न दिख रहा है.
कुछ समय पहले यूक्रेन में जख्मी नागरिकों को जर्मनी के अस्पतालों में भेजा गया. इस दौरान पता लगा कि बहुत से मरीज मल्टीड्रग रेजिस्टेंट हो चुके हैं. यानी उनपर दवा का असर कम या नहीं हो रहा. इससे डॉक्टर भी परेशानी में हैं कि उनका इलाज कैसे किया जाए. इसे साइलेंट पेंडेमिक कहा जा रहा है जो धीरे-धीरे पूरी दुनिया को अपना शिकार बना सकता है.
क्या है मल्टीड्रग रेजिस्टेंस? इसे एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) भी कहते हैं, यानी दवाओं का बेअसर होते जाना. ये तब होता है जब बैक्टीरिया या वायरस या किसी भी तरह के परजीवी अपना रूप बदलते हैं और समय के साथ दवाएं उनपर बेअसर हो जाती हैं. इससे गंभीर ही नहीं, मामूली इंफेक्शन भी खतरनाक साबित हो सकता है क्योंकि शरीर पर किसी एंटीबायोटिक का असर ही नही होगा.
लेकिन क्यों होता है ऐसा? एंटीबायोटिक दवाओं का काम है कि वे बैक्टीरिया, वायरस आदि की ग्रोथ रोककर उन्हें खत्म कर दें. बैक्टीरियल बीमारी में यही दवाएं काम आती हैं. लेकिन इसके साइड इफेक्ट भी हैं. बहुत बार डॉक्टर भी इसे ओवरप्रेस्क्राइब करते हैं तो कई बार लोग ओवर द काउंटर भी एंटीबायोटिक ले लेते हैं.
अगर हम जरूरत से ज्यादा एंटीबायोटिक लें तो बैक्टीरिया में उसके लिए प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो जाती है. मतलब दवा उसपर असर नहीं करती और बीमारी बनी रहती है. परेशान करने वाली बात ये है कि ये प्रतिरोधक क्षमता ट्रांसफर होते हुए बैक्टीरिया की एक से दूसरी प्रजाति में भी चली जाती है.
एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस को आसान भाषा में इस तरह से भी समझ सकते हैं कि जैसे कोई शराब पीना शुरू करे तो पहले-पहल उसे हल्की डोज में भी नशा होता है, लेकिन धीरे-धीरे वो डोज नाकाफी हो जाती है. शरीर उसका आदी हो चुका होता है और नशे के लिए ज्यादा खुराक की मांग करता है. ठीक यही स्थिति एंटीबायोटिक के साथ होती है. एक समय के बाद शरीर पर कम खुराक काम नहीं करती और फिर एक स्थिति ऐसी आती है, जब उसपर एंटीबायोटिक का असर ही नहीं होता.