
क्या बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी का राज होगा? इंडिया के लिए एकदम अलग हो सकती है पड़ोसी देश में स्थिति
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अगस्त 2024 में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद बांग्लादेश की राजनीति में बड़ा बदलाव आया है. BNP की लोकप्रियता घट रही है जबकि जमात-ए-इस्लामी तेजी से उभर रही है. अगले साल होने वाले चुनाव में अगर सत्ता जमात को मिलती है तो भारत को अपनी रणनीति में बड़े बदलाव करने होंगे.
अगस्त 2024 में बांग्लादेश में जब शेख हसीना सरकार का पतन हुआ तब मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की सत्ता में आने की उम्मीदें जाग गईं. पिछले चुनाव का बहिष्कार करने वाली बीएनपी को लगा कि अगर चुनाव होते हैं तो वही सरकार बनाने की प्रबल दावेदार होगी. लेकिन अब जबकि बांग्लादेश में तख्तापलट को एक साल से अधिक समय बीत गया है, बीएनपी अपनी बढ़त खोती हुई दिख रही है और कभी प्रतिबंधित रही बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी चुपचाप आगे बढ़ती दिख रही है.
अब यह सवाल गंभीर हो गया है कि क्या जमात-ए-इस्लामी 2026 के फरवरी में होने वाले बांग्लादेश चुनाव में जीत हासिल कर सकती है? गंभीर इसलिए क्योंकि अमेरिका स्थित थिंक-टैंक इंटरनेशनल रिपब्लिकन इंस्टिट्यूट (IRI) के एक सर्वे के अनुसार, 33% लोगों ने कहा कि वे BNP को वोट देंगे, जबकि 29% ने जमात को पसंद किया. यह सर्वे रिपोर्ट 2 नवंबर को जारी हुई.
सितंबर-अक्टूबर में जुटाए गए आंकड़ों में यह भी सामने आया कि छात्रों की बनाई गई नेशनल सिटिजन्स पार्टी (NCP) को सिर्फ 6% जनता का समर्थन मिला. यह पार्टी उन छात्रों ने मिलकर बनाई है जिनके नेतृत्व में बांग्लादेश में छात्र आंदोलन शुरू हुआ जिसके बाद शेख हसीना को देश छोड़कर जाना पड़ा था.
सितंबर में पहली बार ऐसा हुआ कि जमात के छात्र संगठन 'इस्लामी छात्र शिबिर' ने ढाका यूनिवर्सिटी सेंट्रल स्टूडेंट्स यूनियन का चुनाव जीत लिया. इस जीत ने बता दिया कि जमीन पर जनता का मूड क्या है. शिबिर ने इसके बाद जाहानगीरनगर, राजशाही और चटगांव यूनिवर्सिटी में भी छात्र चुनावों में दबदबा कायम किया.
BNP और जमात के बीच IRI सर्वे में सिर्फ चार प्रतिशत का अंतर है, और चुनाव के करीब आने पर स्थिति किसी भी तरफ जा सकती है.
देवबंदी इस्लामिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी का संस्थागत स्ट्रक्चर काफी मजबूत रहा है. माना जाता है कि आवामी लीग के बाद संस्थागत मजबूती में जमात ही है और बीएनपी इससे पीछे है.

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