क्या इंडिया vs एनडीए की फाइट को मोदी बनाम राहुल में बदल देगा विपक्ष का ये अविश्वास प्रस्ताव?
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लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की एक दूसरे को मिठाई खिलाते हुए तस्वीर हो या राहुल गांधी की संसद में बॉडी लैंगवेज हो, देखकर यही लगता है कि कांग्रेस का जोश राहुल की संसद वापसी से हाई है.
राहुल गांधी को मोदी सरनेम वाले केस में सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत से कांग्रेस फूले नहीं समा रही है. लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की एक दूसरे को मिठाई खिलाते हुए तस्वीर हो या राहुल गांधी की संसद में बॉडी लैंगवेज हो या उनका आक्रामक भाषण, देखकर यही लगता है कि कांग्रेस का जोश राहुल की संसद वापसी से हाई है. वैसे बीजेपी के लिए भी राहुल की वापसी चिंता की बात नहीं लगती. जानकार मानते हैं कि बीजेपी के लिए भी राहुल का फ्रंट फुट पर रहना एक तरह से फायदे का सौदा ही रहने वाला है. दरअसल जब से देश की राजनीति में इंडिया बनाम एनडीए शुरू हुआ है, बीजेपी के रणनीतिकार इसकी काट तलाशने में लगे थे. गठबंधन का नाम इंडिया रखकर विपक्ष ने बीजेपी को बैकफुट पर धकेलने की कोशिश की थी. इस बीच मोदी सरनेम केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला राहुल गांधी के पक्ष में आना और उनकी सांसदी बहाल होना बीजेपी के रणनीतिकारों के लिए भी शायद थोड़ी राहत लेकर आई है. राहुल की सांसदी बहाल होने के एक दिन बाद ही लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस होनी थी. जाहिर है जब बहस शुरू हुई तो बीजेपी के निशाने पर फिर राहुल गांधी और उनका परिवार आ गया.
कांग्रेस की राहुल को पीएम कैंडिडेट के तौर पर पेश करने की कोशिश
अविश्वास प्रस्ताव पर राहुल गांधी की स्पीच को लेकर इतना पैंतरा कांग्रेस ने दिखाया कि राहुल की स्पीच खास बन जाए. और हुआ भी ऐसा. 9 अगस्त को राहुल की स्पीच सुनने के लिए देश की मीडिया पूरी तरह फोकस हो गई. पहले कहा गया कि अविश्वास प्रस्ताव की शुरुआत राहुल गांधी के भाषण से होगी. फिर ऐसे संदेश दिए गए कि पीएम मोदी जिस दिन बोलेंगे उसी दिन भाषण होगा. इसी कारण उनके बोलने का दिन बदला गया. बाद में अचानक 9 अगस्त को भाषण कराने का प्लान बना दिया गया. कांग्रेस की यह रणनीति बताती है कि राहुल गांधी को लेकर कांग्रेस फूंक-फूंक कर कदम रख रही है.
कांग्रेस पार्टी कभी विचारधारा आधारित नेतृत्व को डिवेलप नहीं कर सकी.लेफ्ट और राइट के बीच में हमेशा से पार्टी लेफ्ट राइट करती रही है. सोनिया और राहुल के लिए आम जनता के बीच इंदिरा और राजीव का देश के लिए बलिदान ही बताना काफी था. पिछले 2 चुनावों में राहुल गांधी के सॉफ्ट हिंदुत्व से लेकर चौकीदार चोर या राफेल डील में भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे कभी सिरे नहीं चढ़ सके.पर कांग्रेस पार्टी के लगातार अथक प्रयासों का परिणाम है कि पिछले कुछ दिनों से राहुल का नया अवतार सामने आया है. 5 महीने तक चले भारत जोड़ो यात्रा और उसके बाद 5 महीने मोदी सरनेम विवाद में संसद सदस्यता चली जाने को राहुल गांधी और कांग्रेस ने जनता के बीच ठीक तरह से भुनाया है. पदयात्रा ने राहुल को भारतीय राजनीति में परिपक्व राजनीतिज्ञ के रूप में स्थापित करने की कोशिश की तो संसद सदस्यता खत्म होने से उन्हें शहीद की तरह पेश किया गया. कांग्रेस पार्टी राहुल के इस नए अवतार को आम लोगों से कनेक्ट करने में जुटी हुई है.
कांग्रेस की ब्रैंडिंग, मोदी के मुकाबले सिर्फ़ राहुल
कांग्रेस लगातार राहुल के लिए `जननायक` जैसी ब्रॉन्डिंग करने में लगी है, ताकि मोदी के मुकाबले सिर्फ़ राहुल हैं इसका मैसेज दिया जा सके.राहुल कुछ दिनों बाद भारत जोड़ो यात्रा की दूसरी कड़ी पर निकलने वाले हैं. पहली यात्रा ने उनकी परिपक्व नेता की छवि बनाने की कोशिश की, दूसरी यात्रा में उन्हें जननायक के रूप में स्थापित करने की कोशिश होगी.कांग्रेस पार्टी यह जानती है कि इंडिया गठबंधन में या स्वयं कांग्रेस पार्टी में भी ऐसा कोई लीडर नहीं है जो पैन इंडिया पीएम मोदी का मुकाबला कर सके. अविश्वास प्रस्ताव के दौरान इंडिया गठबंधन के किसी नेता के स्पीच का इंतजार उतना नहीं है जितना राहुल गांधी का था. राहुल के बोलने की शैली को लेकर कोई उनकी आलोचना कर सकता है पर इससे इनकार नहीं कर सकता है कि पीएम नरेंद्र मोदी के बाद लोकसभा में सिर्फ और सिर्फ राहुल को सुनने में लोगों की दिलचस्पी थी.
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