
काश, गोवा को मुक्त कराने के लिए लोहिया को समय रहते नेहरू का साथ मिल गया होता
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गोवा आज की तारीख 19 दिसंबर को 1961 में पुर्तगालियों के अत्याचार से मुक्त हुआ था. भारत की आजादी के मिलने के साथ ही गोवावासियों को लगा था कि वो भी मुक्त हो जाएंगे. फ्रांस ने पुडुचेरी को स्वेच्छा से छोड़ दिया पर पुर्तगालियों ने ऐसा नहीं किया. इसके पीछे क्या हमारे नेतृत्व की कमजोरियां थीं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरवरी 2022 में गोवा में एक रैली के दौरान कहा था कि अगर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू चाहते तो 1947 में ही कुछ ही घंटों के भीतर गोवा आज़ाद हो जाता. लेकिन कांग्रेस ने 14 वर्षों तक गोवा की आज़ादी के लिए कुछ नहीं किया. पीएम मोदी ने इसके पहले कुछ ऐसी ही बातें राज्य सभा में भी कहीं थीं.उसके बाद से लगातार इस विषय को लेकर बहस जारी है.
आज 19 दिसंबर को देश गोवा मुक्ति दिवस मना रहा है इसलिए यह सवाल एक बार फिर मौंजू हो जाता है कि क्या नेहरू की गलतियों के चलते गोवा वासियों को एक क्रूर पुर्तगाली तानाशाह के अत्याचार को 14 साल और झेलना पड़ गया था. जबकि दूसरी तरफ पाकिस्तान ने अपनी स्थापना के तुरंत बाद 1948 में ही बलपूर्वक बलूचिस्तान को अपने में मिला लिया. जबकि बलूचिस्तान के लोग पाकिस्तान के साथ जाना नहीं चाहते थे. आज तक बलूचिस्तान अपनी स्वतत्रता को लेकर संघर्ष कर रहा है. जबकि गोवा के लोग भारत में विलय के लिए आंदोलन कर रहे थे. और आज भी गोवा के लोग भारत के साथ खुश हैं. जाहिर है कि गोवा में भारत के पक्ष में माहौल होने के बावजूद तत्कालीन लीडरशिप की कुछ कमजोरियां रही होंगी जिसके चलते यहां की आजादी 14 साल डिले हो गई.
ओमप्रकाश दीपक और अरविंद मोहन की किताब ‘लोहिया एक जीवनी’ के हवाले से BBC की एक रिपोर्ट में लिखा गया है कि फ़रवरी 1947 में नेहरू ने यहां तक कह दिया कि गोवा का प्रश्न ही महत्वहीन है. उन्होंने इस पर भी संदेह जताया कि गोवा के लोग भारत के साथ आना चाहते हैं. जाहिर है भारत के प्रधानमंत्री के इस तरह के बयान के बाद गोवा के आंदोलनकारियों का हौसला टूट गया होगा जो भारत में विलय चाहते थे. लेकिन इस बीच प्रख्यात सोशलिस्ट लीडर राम मनोहर लोहिया का गोवावासियों के लिए संघर्ष लगातार जारी रहा . वे गोवावासियों की स्वतंत्र आत्मा के प्रतीक बन चुके थे.लोहिया को महात्मा गांधी का समर्थन तो मिल रहा था पर वो केवल नैतिक समर्थन ही था. अगर तत्कालीन कांग्रेस ने लोहिया को रणनीतिक सहयोग भी दिया होता तो जाहिर है कि कहानी कुछ और होती.
गोवा मुक्ति आंदोलन 1946 में लोहिया को नेहरू का साथ क्यों नहीं मिला
राम मनोहर लोहिया (डॉ. लोहिया) गोवा मुक्ति आंदोलन के प्रमुख नेता थे, जिन्होंने 1946 में गोवा में सत्याग्रह शुरू कर पुर्तगाली शासन के खिलाफ संघर्ष की शुरुआत की. इस आंदोलन में महात्मा गांधी का उन्हें स्पष्ट समर्थन मिला, लेकिन जवाहरलाल नेहरू ने साथ नहीं दिया. यह अंतर दोनों नेताओं की विचारधारा, राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में निहित है. लोहिया ने गोवा को भारत का अभिन्न हिस्सा मानते हुए तत्काल मुक्ति की मांग की, लेकिन नेहरू की कूटनीतिक और शांतिवादी नीति ने उन्हें सैन्य या प्रत्यक्ष समर्थन से रोका. .
गांधीजी ने लोहिया के गोवा सत्याग्रह को पूर्ण समर्थन दिया क्योंकि यह उनकी अहिंसा और सिविल डिसओबिडिएंस की विचारधारा से मेल खाता था. 1946 में लोहिया ने गोवा में पुर्तगाली शासन के खिलाफ सत्याग्रह शुरू किया, जहां वे नागरिक अधिकारों की मांग कर रहे थे. गिरफ्तार होने के बाद लोहिया ने गांधी से सलाह मांगी, और गांधी ने उन्हें प्रोत्साहित किया. गांधी ने कहा था कि गोवा की मुक्ति भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा है और सत्याग्रह इसका सही तरीका है.

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