काशी में महर्षि सुश्रुत ने की थी पहली प्लास्टिक सर्जरी, उनके 3000 साल पुराने तरीकों पर एम्स रीसर्च करेगा
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अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में प्लास्टिक सर्जरी दिवस पर देशभर के प्लास्टिक सर्जरी के 98 विशेषज्ञ डॉक्टर एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे. इस दौरान एम्स के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रमुख ने सर्जरी के पितामह महर्षि सुश्रुत की शल्य चिकित्सा पद्धति पर शोध करने की बात कही.
अब एम्स में भारतीय चिकित्सा के आदि पुरुष महर्षि सुश्रुत की शल्य चिकित्सा यानी सर्जरी की प्रचलित पद्धति पर शोध करेगा. प्राचीनतम चिकित्सा पद्धतियों में से एक आयुर्वेद में अंग प्रत्यारोपण यानी प्लास्टिक सर्जरी का वर्णन सुश्रुत संहिता में मिलता है. विशेषज्ञों का अनुमान है कि सुश्रुत संहिता ग्रंथ लगभग 3000 साल पहले छह सौ ईसा पूर्व में लिखा गया था.
दिल्ली में एम्स का प्लास्टिक सर्जरी विभाग आधुनिकतम मौजूदा मेडिकल सर्जरी और सबसे पुरानी सुश्रुत की लिपिबद्ध की गई शल्य चिकित्सा का तुलनात्मक अध्ययन करने जा रहा है. केंद्र सरकार के विज्ञान और तकनीकी विभाग से एम्स ने इस विषय में अनुदान करने का भी आग्रह किया है.
125 से ज्यादा सर्जिकल उपकरणों का जिक्र
एम्स के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. मनीष सिंघल के मुताबिक सुश्रुत संहिता में 125 से ज्यादा किस्म के शल्य चिकित्सा उपकरण यानी सर्जिकल इक्विपमेंट्स का वर्णन है. यह अलग बात है कि वह उपकरण आधुनिक उपकरणों की तरह फाइन और सोफिस्टिकेट नहीं थे. हालांकि उनमें चाकू, सुई, चिमटे, प्राकृतिक धागे सहित कई नुकीले व पैने उपकरण शामिल थे. पानी में कई बार उबालने के बाद इनका प्रयोग किया जाता था.
सुश्रुत संहिता में 1120 बीमारियों का विवरण
आयुर्वेद विशेषज्ञों के मुताबिक सुश्रुत संहिता के 184 अध्याय हैं. इनमें 1120 बीमारियों के लक्षण और उनकी सर्जरी का जिक्र है. सर्जरी के लिए उपयोग में आने वाले 700 किस्म के पौधों की पहचान और गुणों का जिक्र है. सुश्रुत संहिता में हड्डियों के टूटने के 12 तरह के फ्रैक्चर और हड्डियों व जोड़ के खिसकने के 7 किस्म के डिसलोकेशन का वर्णन है. ये ग्रंथ तब लिखे गए थे, जब एक्स रे और अल्ट्रा साउंड या स्कैन का कोई अता पता नहीं था.
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