कानून सभी के लिए समान, वकील किसी भी तरह से बच नहीं सकते... बॉम्बे हाई कोर्ट ने क्यों कही ये बात
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भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में संशोधन करने और धारा घोषित करने के लिए भारत संघ को निर्देश देने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को यह टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि, 353 एवं 332 अधिवक्ताओं पर लागू नहीं होंगे.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को वकीलों से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि, कानून सभी के लिए समान है और वकील भी उससे किसी तरह बच नहीं सकते हैं. वे कानून के तहत अपराधों के आरोप से छूट या विशेष सुरक्षा की मांग नहीं कर सकते हैं. हालांकि अदालत ने राज्य सरकार को 4 सप्ताह के भीतर याचिका पर जवाब देने का निर्देश दिया है. मामले की अगली सुनवाई 11 जून को रखी गई हैं.
बता दें कि, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में संशोधन करने और धारा घोषित करने के लिए भारत संघ को निर्देश देने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को यह टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि, 353 एवं 332 अधिवक्ताओं पर लागू नहीं होंगे. धारा 353 लोक सेवक को उसके कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल के लिए है, जबकि 332 तब लागू किया जाता है जब कोई व्यक्ति स्वेच्छा से किसी लोक सेवक को उसके कर्तव्य से रोकने के लिए चोट पहुंचाता है.
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ के समक्ष वकील नितिन सतपुते की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई हुई. याचिकाकर्ता के वकील विनोद रमन ने दलील दी कि लोगों को विरोध करने से रोकने के लिए आपराधिक बल का उपयोग करना अवैध था. राज्य में एक वकील दंपती का अपहरण कर हत्या कर दी गयी थी.
इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन के लिए 2 फरवरी को वकील आजाद मैदान में इकट्ठा हुए थे. इस दौरान पुलिस ने वकीलों के साथ मारपीट की, जिससे कई वकील घायल हो गए. याचिका में वकीलों के साथ मारपीट करने वाले पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई का अनुरोध किया गया है. सरकारी वकील हितेन वेनेगांवकर ने कहा कि घटना के सीसीटीवी फुटेज से कोई मनमानी सामने नहीं आई है. पुलिस बैरिकेड्स उन्हें मंत्रालय (राज्य सचिवालय) तक मार्च करने से रोकने के लिए लगाए गए थे.
विरोध प्रदर्शन की खबरों में सामने आया था कि, सतपुते सहित कुछ वकीलों के साथ मारपीट की गई, जिससे एक वकील बेहोश हो गया और अन्य को चोटें आईं. जवाब में, सतपुते की याचिका में न केवल वकीलों को रोकने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई, बल्कि अधिवक्ताओं के खिलाफ अपराधों को विशेष रूप से संबोधित करने के लिए अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम को लागू करने और आईपीसी में धारा 353 (ए) को जोड़ने की भी मांग की गई. सुनवाई के बाद पीठ ने वेनेगांवकर को याचिका का जवाब देते हुए हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और याचिका की सुनवाई 16 मई तक के लिए स्थगित कर दी
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