
उच्च शिक्षा, बेदाग छवि और कट्टरपंथी सोच... जानिए कैसे बेनकाब हुआ 'व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल'!
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जम्मू-कश्मीर में आतंकी आकाओं ने भर्ती की रणनीति बदल दी है. अब वे ऐसे उच्च शिक्षित युवाओं को निशाना बना रहे हैं, जिनका न तो कोई आपराधिक रिकॉर्ड है और न ही अलगाववाद से कोई जुड़ाव. डॉक्टरों की तिकड़ी से लेकर मासूम दिखने वाले पैरामेडिक तक 'व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल' ने सुरक्षा एजेंसियों को चौंका दिया है.
जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकी संगठनों और उनके आकाओं ने भर्ती की अपनी पारंपरिक पद्धति बदल दी है. सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, अब आतंकवादी ऐसे युवाओं को तरजीह दे रहे हैं जो पूरी तरह से 'क्लीन स्लेट' हों. उनका न कोई आपराधिक रिकॉर्ड, न किसी अलगाववादी से रिश्ता. यह बदलाव दो दशक पहले के उस दौर से बिल्कुल अलग है जब आतंकी संगठनों से पहले से जुड़े युवकों को ही समूह में शामिल किया जाता था. नई रणनीति का मकसद सुरक्षा बलों की निगरानी से बच निकलना है.
'व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल' की जांच कर रही एजेंसियों को अब तक गिरफ्तार किए गए आरोपियों में एक समान पैटर्न मिला है. ये सभी उच्च शिक्षित हैं. इनमें से किसी ने भी जीवन में पहले कोई राष्ट्र-विरोधी गतिविधि नहीं की थी. एक अधिकारी के अनुसार, ''डॉ. अदील राथर, उसके भाई डॉ. मुजफ्फर राथर और डॉ. मुजम्मिल गनई तक किसी का भी कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं मिला है.'' यहां तक कि इन युवकों के परिवारों का भी किसी आतंकी या अलगाववादी से कोई पुराना संबंध नहीं रहा है.
चौंकाने वाली बात यह कि 10 नवंबर को दिल्ली के लाल किला मेट्रो स्टेशन के बाहर विस्फोट करने वाली कार चलाने वाला डॉ. उमर नबी भी पूरी तरह से बेदाग प्रोफाइल वाला था. उसका न तो कोई आपराधिक इतिहास था, न ही उसके परिवार पर किसी तरह का कोई दाग. इसी क्लीन इमेज’ की वजह से उसे टेरर मॉड्यूल में एंट्री दी गई. जांचकर्ताओं का मानना है कि कश्मीर में सक्रिय आतंकी आका सोची-समझी रणनीति के तहत पढ़े-लिखे और अपराध रहित युवाओं को रिक्रूट करना शुरू किया है.
एक अधिकारी के मुताबिक, ''ये वह प्रोफाइल है जिसकी किसी को कल्पना भी नहीं होगी. डॉक्टरों का एक समूह आतंकवाद में शामिल होगा. सुरक्षा एजेंसियों के लिए यह शुरुआती स्तर पर पहचान से बचने का सबसे कारगर तरीका बन गया.'' यह पूरा मॉड्यूल तब उजागर हुआ जब अक्टूबर के मध्य में नौगाम के बनपोरा क्षेत्र में दीवारों पर पुलिस और सुरक्षा बलों को धमकी देने वाले पोस्टर नजर आए. श्रीनगर पुलिस ने 19 अक्टूबर को केस दर्ज किया और जांच के लिए एक स्पेशल टीम बनाई गई.
पोस्टर चिपकाने वाले चेहरों की पहचान के लिए सीसीटीवी फुटेज का फ्रेम-दर-फ्रेम विश्लेषण किया गया. इसके बाद तीन संदिग्ध आरिफ निसार डार उर्फ साहिल, यासिर-उल-अशरफ और मकसूद अहमद डार उर्फ शाहिद गिरफ्तार किए गए. ये तीनों पहले पथराव के मामलों में शामिल रह चुके थे. इन तीनों से पूछताछ के दौरान शोपियां निवासी मौलवी इरफान अहमद के बारे में पता चला. यह आरोपी पहले पैरामेडिक था और बाद में इमाम बन गया. उसने अपनी पेशेगत पहुंच का इस्तेमाल किया.

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