आनंद मोहन अकेले नहीं... बिहार की सियासत में इन 8 बाहुबलियों का भी है दबदबा
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बाहुबली आनंद मोहन का नाम चर्चा में है. दरअसल एक जिलाधिकारी की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे आनंद कुछ दिन पहले ही पैरोल पर जेल से बाहर आए थे लेकिन नीतीश कुमार ने कानून में कुछ ऐसा बदलाव कर दिया, जिससे जल्द ही उन्हें रिहा कर दिया जाएगा. इसी के साथ ही आनंद के अलावा बिहार के बाहुबलियों के नाम भी चर्चा होने लगी है.
बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन को लेकर प्रदेश में सियासत गरमा गई है. आनंद को 1994 में गोपालगंज के जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. उन्हें हाल में पैरोल पर जेल से रिहा किया गया था लेकिन नीतीश सरकार ने उनकी रिहाई से पहले जेल मैनुअल में ऐसा बदलाव कर दिया, जिससे अब वह जल्द ही सहरसा जेल से बाहर आ जाएंगे. आनंद बिहार के उन बाहुबली नेताओं में शामिल हैं, जिनका अपने क्षेत्र में अच्छा-खासा राजनीतिक प्रभाव है. आइए जानते हैं कि आनंद की तरह ऐसे कितने बाहुबली नेता हैं, जिनकी तूती बोलती है.
बिहार के मोकामा में अनंत सिंह को 'छोटे सरकार' और 'मोकामा के डॉन' के नाम से जाना जाता है. अनंत सिंह पर सैकड़ों आपराधिक केस हैं. अनंत घर से एके-47 और बम तक बरामद हो चुके हैं. उसे AK-47 केस में एमपी-एमएलए कोर्ट ने 10 साल जेल की सजा सुनाई है. अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह भी बिहार के बाहुबली नेता थे. वह पूर्व सीएम और RJD प्रमुख लालू प्रसाद यादव की सरकार में मंत्री भी थे. अनंत को दिलीप ने ही राजनीत के गुर सिखाए थे. कांग्रेस विधायक रहे श्याम सुंदर धीरज के लिए बूथ कब्जाने वाले दिलीप उन्हीं को मात देकर जनता दल के टिकट पर विधायक (1990-2000) बने थे. नेता बनने के बाद दिलीप ने अपना दबदबा कायम करने के लिए अपने भाई अनंत को जिम्मेदारी सौंपी थी.
ऐसा कहा जाता है कि अनंत सिंह कम उम्र में ही वैराग्य ले चुका था. वह साधु बनने के लिए अयोध्या और हरिद्वार में घूम रहा था लेकिन साधुओं के जिस दल में वह था, वहां उसका झगड़ा हो गया. वहीं वैराग्य के संसार से जब उसका मन उचटने लगा था तभी उसके सबसे बड़े भाई बिरंची सिंह की हत्या कर दी गई थी. इसके बाद अनंत पर बदला लेने की धुन सवाल हो गई थी. एक दिन उसे पता चला कि उसके भाई का हत्यारा नदी के पास बैठा है तो तैरकर उसने नदी पार की और ईंट-पत्थरों से उसके माल डाला था.
अनंत सिंह पांच बार का विधायक है. 2005 के विधानसभा चुनाव से उसने अपनी राजनीति करियर की शुरुआत की थी. उसने जेडीयू से फरवरी 2005, अक्टूबर 2005, 2010 का चुनाव लड़ा और जीता था. इसके बाद 2015 में वह निर्दलीय विधायक बना फिर 2020 में राजेडी से टिकट लेकर जेल से चुनाव लड़ा. इसमें अनंत सिंह ने जेडीयू उम्मीदवार राजीव लोचन को हरा दिया था.
रामा किशोर सिंह पांच बार विधायक और एक बार सांसद रहे. वह रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी से सांसद थे. वह कई मामलों में दोषी पाए जा चुके हैं, जिसमें किडनैपिंग और कत्ल जैसे संगीन अपराध भी शामिल हैं. अपराध की लंबी हिस्ट्री होने के बावजूद उन्हें राजपूतों का काफी समर्थन हासिल है.
नायडू पहली बार 1995 में मुख्यमंत्री बने और उसके बाद दो और कार्यकाल पूरे किए. मुख्यमंत्री के रूप में उनके पहले दो कार्यकाल संयुक्त आंध्र प्रदेश के नेतृत्व में थे, जो 1995 में शुरू हुए और 2004 में समाप्त हुए. तीसरा कार्यकाल राज्य के विभाजन के बाद आया. 2014 में नायडू विभाजित आंध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के रूप में उभरे और 2019 तक इस पद पर रहे. वे 2019 का चुनाव हार गए और 2024 तक विपक्ष के नेता बने रहे.
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