'असाधारण मामलों में ही अधिकारियों को हाजिर होने को कहा जाए', सुप्रीम कोर्ट में SoP की पेशकश
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केंद्र सरकार की ओर से प्रस्तावित SoP में सुझाव देते हुए कहा गया है कि इसका मकसद न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच आपसी संबंधों में सकारात्मक सौहार्द बढ़ाना है. ड्राफ्ट SoP में ट्रायल कोर्ट से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक के सामने पेशी के प्रावधान और कायदों का जिक्र है.
अब अदालतों में सुनवाई के दौरान सरकारी अफसरों की पेशी पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में स्टैंडर्ड ऑपरेशन प्रोसीजर यानी SoP तय करने के लिए एक मसौदा दाखिल किया है. केंद्र सरकार की ओर से प्रस्तावित SoP में सुझाव देते हुए कहा गया है कि इसका मकसद न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच आपसी संबंधों में सकारात्मक सौहार्द बढ़ाना है. ड्राफ्ट SoP में ट्रायल कोर्ट से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक के सामने पेशी के प्रावधान और कायदों का जिक्र है.
सरकार का सुझाव है कि सरकारी अधिकारियों को केवल असाधारण मामलों में ही व्यक्तिगत तौर पर कोर्ट में हाजिर होने को कहा जाए. यानी अधिकारियों को अदालत में तलब करते समय अदालतें संयम बरतें. इसके लिए सबसे उपयुक्त उपाय ये भी हो सकता गई कि अधिकारियों को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से वर्चुअल तौर पर पेश होकर अदालत के प्रश्नों के उत्तर देने की अनुमति दी जाए ताकि उनका रोजमर्रा के प्रशासनिक और जनहित के कामकाज हर्ज न हों साथ ही उनके दिल्ली तक आने जाने में लगने वाले समय, धन और श्रम की भी बचत हो सके.
इसमें आगे कहा गया है कि नीतिगत मामलों में कोर्ट अधिकारियों से सवाल पूछने के बजाय सीधे सरकार से जवाब मांग सकती है. अगर सरकार के आदेश को लेकर कोर्ट कोई स्पष्टता या सफाई चाहती है तो उसके वैधानिक पहलू पर ही बात करनी चाहिए. सरकारी वकील के कोर्ट में दिए बयान या दलील पर सरकार के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू ना की जाय. साथ ही कोई भी जज अपने ही आदेश पर अवमानना की कार्यवाही की सुनवाई खुद न करें तो उचित होगा. अदालतें अपने आदेश पर अमल करने के लिए सरकार को समुचित समय भी दें.
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