
अरावली, जिसे आपने कभी नहीं देखा... 3डी नक्शों में देखिए पर्वत श्रृंखला
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अरावलि संकट के बीच इस पर्वत श्रृंखला की सैटेलाइट तस्वीरें सामने आई हैं. इन सैटेलाइट तस्वीरों में मानवीय गतिविधियों को उजागर करती हैं. अरावलि पर्वत श्रृंखला के पर्वत शिखरों का चित्रण और मानवीय गतिविधियों पर सैटेलाइट जांच में क्या संकट सामने आया?
अरावली पर्वत श्रृंखला इन दिनों नाजुक परिस्थितियों और खतरों को लेकर चर्चा में है. इस पर्व श्रृंखला की कई पहाड़ियां झाड़ियों से ढंकी हैं, लेकिन खनन और निर्माण से बिना किसी सुरक्षा के छोड़ दी जा रही हैं. ऑनलाइन उपलब्ध अधिकांश नक्शे इस पर्वत श्रृंखला के वास्तविक फैलाव, ऊंचाई में इसके सूक्ष्म बदलावों के साथ ही जमीन पर हो रहे घटनाक्रम सही तरीके से नहीं दिखाते. इंडिया टुडे की ओपन सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) ने इमर्सिव 3डी डेटा, सैटेलाइट इमेजरी और स्थानिक पैटर्न का इस्तेमाल कर अरावली संकट को समझने की कोशिश की है.
हिमालय जैसी विशाल पर्वत श्रृंखलाओं के विपरीत, अरावली मुख्य रूप से निम्न कटक या रिज से बनी है, जिनकी ऊंचाई अक्सर कुतुब मीनार से भी कम होती है. सौ मीटर की समान कट ऑफ रेंज के कारण अरावली का बड़ा हिस्सा प्रोटेक्शन से वंचित है. हालांकि, सरकार की सिफारिशों के बाद कोर्ट ने अरावली को लेकर एक नई परिभाषा स्वीकार की. इस परिभाषा के मुताबिक, वह कोई भी भू-आकृति जो आसपास की भूमि या स्थानीय रिलीफ संरचना से कम से कम 100 मीटर या 328 फीट ऊंची हो, अरावली पहाड़ी है.
इसी परिभाषा में यह भी कहा गया है कि एक-दूसरे से 500 मीटर की दूरी के भीतर स्थित दो या अधिक ऐसी पहाड़ियों और उनके बीच की भूमि को मिलाकर अरावली पर्वत श्रृंखला माना जाएगा. अरावली संकट पर सरकार ने भी रविवार को बयान जारी किया. इसमें सरकार की ओर से कहा गया कि नई परिभाषा का उद्देश्य नियमन को मजबूत करना, अस्पष्टता को कम करना और एकरूपता लाना है. सरकार ने यह भी कहा कि राज्यों में खनन को समान रूप से नियंत्रित करने के लिए एक एकल परिभाषा जरूरी थी.
इंडिया टुडे की OSINT टीम ने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के ओपनटोपोग्राफी रिसर्च सेंटर से प्राप्त हाई रिजॉल्यूशन ऊंचाई के डेटा का उपयोग कर माउंट आबू से नई दिल्ली तक 670 किलोमीटर के विस्तार में अरावली पर्वत श्रृंखला का मानचित्र तैयार किया. अरावली की ऊंचाई कुछ सौ मीटर की साधारण पहाड़ियों से लेकर 1700 मीटर से भी अधिक ऊंचे शिखर तक जाती है, जबकि अधिकांश हिस्सा समुद्र तल से 300 से 900 मीटर की ऊंचाई के बीच ही स्थित है.
यह समझने के लिए कि अरावली की पहाड़ियां कैसे बदल रही हैं, इंडिया टुडे ने मानचित्र का विश्लेषण कर दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान के आसपास के क्षेत्रों को शहरी क्षेत्र, वनस्पति और जल निकायों में वर्गीकृत किया. पर्यावरणविद लंबे समय से यह मुद्दा उठा रहे हैं. सेंटिनल-2 सैटेलाइट से मिले डेटा का उपयोग कर लैंड यूज लैंड कवर (LULC) मानचित्र तैयार किया गया, जो यह दर्शाता है कि भूमि का उपयोग किस प्रकार किया जा रहा है और इसे स्थानिक विश्लेषण उपकरणों के माध्यम से पूर्व-निर्धारित श्रेणियों के आधार पर वर्गीकृत किया गया.
हमारे विश्लेषण से यह पता चला कि पिछले आठ साल में जिन जिलों में अरावली फैली है, वहां निर्मित क्षेत्र 1600 वर्ग किलोमीटर से अधिक बढ़ा है. इन इलाकों में ग्रीन बेल्ट लगातार कम हुआ है. वनस्पति क्षेत्र 11392 वर्ग किलोमीटर से घटकर अब 7521 वर्ग किलोमीटर रह गया है. यह सब एक दशक से भी कम समय में हुआ. यह विश्लेषण यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के रिमोट सेंसिंग डेटा पर आधारित और 2017 से 2025 के बीच के ग्रीष्मकालीन महीनों पर केंद्रित है, जिससे बादलों के प्रभाव को न्यूनतम रखा जा सके.

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