OBC आरक्षण पर गठित रोहिणी आयोग ने 6 साल बाद सौंपी रिपोर्ट, 13 बार मिला कार्यकाल विस्तार
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ओबीसी ग्रुप के उप वर्गीकरण के लिए गठित रोहिणी आयोग ने राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. अक्टूबर 2017 की एक अधिसूचना के तहत इस आयोग का गठन किया गया था. दिल्ली हाई कोर्ट की सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी इस आयोग की अध्यक्ष हैं. 13 बार कार्यकाल बढ़ाये जाने के बाद आयोग ने यह रिपोर्ट सौंपी.
ओबीसी आरक्षण का लाभ कुछ चुनिंदा वर्गों द्वारा उठाने पर इससे जुड़ी विसंगतियों में सुधार के लिए गठित रोहिणी आयोग ने 6 साल बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. दिल्ली हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी रोहिणी की अध्यक्षता में पैनल को अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग के उप-वर्गीकरण की जांच करने के लिए नियुक्त किया गया था. इसे 2 अक्टूबर 2017 को अधिसूचित किया गया था. विषय की राजनीतिक संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए इस पैनल का 13 बार विस्तार किया गया.
सामाजिक न्याय मंत्रालय के अनुसार, आयोग को ओबीसी की केंद्रीय सूची में विभिन्न प्रविष्टियों का अध्ययन करने और किसी भी दोहराव, अस्पष्टता, स्पेलिंग या ट्रांसस्क्रिप्शन जैसी त्रुटियों में सुधार की सिफारिश करने का काम सौंपा गया था. इसके अलावा ओबीसी के लिए आरक्षण के लाभों के असमान वितरण की सीमा की जांच करना और ओबीसी के उप-वर्गीकरण के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तंत्र, मानदंड और पैरामीटर आयोग को काम करना था. उप-वर्गीकरण के पीछे का आइडिया हर ब्लॉक के लिए आरक्षण प्रतिशत को सीमित करके ओबीसी वर्ग की कमजोर जातियों मजबूत समुदायों के बराबर लाना है.
कई लोगों का मानना है कि रिपोर्ट को बेहतर बनाने के लिए पैनल को लगातार विस्तार दिया गया क्योंकि इसकी टिप्पणियों से बीजेपी के ओबीसी वोट शेयर में गड़बड़ी हो सकती है. यह वोट शेयर लोकसभा में बीजेपी के पूर्ण बहुमत का आधार है. पीएम मोदी के चेहरे के दम पर बीजेपी कई राज्यों में ओबीसी वोटों पर कब्जा कर रही है, जो खुद भी इसी समुदाय से आते हैं. अनुमान के मुताबिक, भारत की 54 प्रतिशत आबादी ओबीसी जातियों के अंतर्गत आती है और कोई भी पार्टी सबसे बड़े वोटिंग ब्लॉक को छोड़ने का जोखिम नहीं उठा सकती.
हालांकि, आलोचक वर्तमान ओबीसी आरक्षण व्यवस्था कहते हैं कि ओबीसी में शक्तिशाली जातियां अवसरों का सबसे ज्यादा फायदा उठा रही हैं, जबकि कमजोर समुदाय इससे वंचित रह जा रहे हैं. बीजेपी जातीय जनगणना का विरोध कर रही है क्योंकि उसे लगता है कि यह जनगणना ओबीसी समाज में बनाई गई पार्टी की पैठ पर असर डाल सकता है.
बीजेपी के एक ओबीसी सांसद ने इंडिया टुडे टीवी को बताया कि पार्टी 'सबका साथ, सबका विश्वास' के लिए प्रतिबद्ध है. पार्टी यह सुनिश्चित करेगी कि सभी समुदायों तक सामाजिक न्याय पहुंचे. उन्होंने कहा कि पार्टी इस विषय की संवेदनशीलता को समझती है, इसलिए वह देखेगी कि कोई भी समुदाय इससे नाराज न हो.
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