OBC आरक्षण पर क्यों कोई भी दल रिस्क लेने को तैयार नहीं? पढ़ाई-लिखाई से लेकर नौकरियों तक...जानें कितनी हिस्सेदारी
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उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है. योगी सरकार ने हाल ही में ओबीसी आरक्षण का ड्राफ्ट जारी किया था, जिसे इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि देश की सियासत में ओबीसी कितने मायने रखते हैं? पढ़ाई-लिखाई से लेकर नौकरियों तक, ओबीसी की स्थिति कैसी है?
उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण का पेच फंस गया है. यूपी सरकार ने निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण का ड्राफ्ट जारी किया था. इस ड्राफ्ट में बताया था कि नगरीय निकायों की 762 सीटों में से कितनी ओबीसी के लिए होंगी. लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस ड्राफ्ट को रद्द कर दिया है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा कि या तो सरकार सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय 'ट्रिपल टेस्ट' का फॉर्मूला अपनाकर ओबीसी आरक्षण दे या फिर बगैर ओबीसी आरक्षण के ही चुनाव करवा ले.
इस पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी साफ कर दिया है कि बगैर ओबीसी आरक्षण के चुनाव नहीं कराए जाएंगे. उन्होंने कहा कि सरकार एक आयोग का गठन कर ट्रिपल टेस्ट के आधार पर ओबीसी को आरक्षण देगी और उसके बाद ही चुनाव होंगे.
हालांकि, यूपी इकलौता राज्य नहीं है जहां नगरीय निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के मसले को लेकर विवाद हुआ है. इससे पहले महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार और झारखंड में भी नगरीय निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर बवाल हो चुका है.
उत्तर प्रदेश में ओबीसी का क्या है गणित?
किस राज्य में ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी कितनी है? इसका आखिरी आंकड़ा 2011-12 का है.
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