सियासत की फैमिली फाइट... पवार परिवार से पहले इन 10 परिवारों में भी छिड़ चुकी है जंग!
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महाराष्ट्र में पवार परिवार में घमासान है. एनसीपी चीफ शरद पवार के भतीजे अजित ने पार्टी से बगावत कर दी है. अब पार्टी पर कब्जे की जंग शुरू हो गई है. दोनों ही गुट विधायकों को अपने-अपने पाले में करने में लगे हैं. देश में इससे पहले भी बड़े राजनीतिक दलों में टूट हुई है और उसकी वजह भी परिवार या चाचा-भतीजे भी बने हैं. इन सियासी घटनाक्रमों का नुकसान भी पार्टियों को उठाना पड़ा है. ऐसे ही 10 पार्टियों के बारे में जानिए...
महाराष्ट्र में 25 साल पुरानी पार्टी NCP बिखर गई है. चाचा-भतीजे (शरद पवार और अजीत पवार) की जंग अब और तेज होने के आसार बढ़ गए हैं. दोनों ही गुट चुनाव आयोग पहुंच गए हैं और पार्टी, सिंबल पर दावा ठोंक दिया है. फिलहाल, सुलह की उम्मीदें दूर तक नजर नहीं आ रही हैं. हालांकि, देश की राजनीति में परिवार में विवाद और पार्टियों में दोफाड़ होने का यह पहला घटनाक्रम नहीं है. इससे पहले भी राजनीति के दिग्गजों के बीच रिश्तों में दगाबाजी देखने को मिली है. चाहे सोनिया-मेनका विवाद हो या सिंधिया और चौटाला परिवार के बीच विद्रोह. परिवारों में फूट-बगावत और दगाबाजी से सियासत गरमाती रही है. जानिए परिवार और पार्टियों में टूट के कुछ प्रमुख घटनाक्रम...
हाल ही में शरद पवार और अजित पवार का विवाद सुर्खियों में है. लेकिन, इससे पहले चाचा-भतीजे चिराग-पशुपति कुमार पारस, अखिलेश यादव-शिवपाल यादव, प्रकाश सिंह बादल-मनप्रीत बादल, बाला साहेब ठाकरे-राज ठाकरे का विवाद भी चर्चा में रहा. इसके अलावा, मां-बेटे में विजयाराजे-माधव राव सिंधिया की कलह भी छिपी नहीं है. भाइयों में स्टालिन-अलागिरी, तेजप्रताप और तेजस्वी में सियासी जंग देखने को मिली है. हरियाणा में चौटाला फैमिली और सोनिया- मेनका गांधी विवाद भी राजनीतिक गलियारों में है.
1. शरद पवार और अजित पवार विवाद
सबसे पहले महाराष्ट्र के ताजा घटनाक्रम पर बात करेंगे. 2 जुलाई को अजित पवार ने अचानक महाराष्ट्र की राजनीतिक हवाओं का रुख बदल दिया. वे अपने भरोसेमंद नेता प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल समेत अन्य विधायक-एमएलसी के साथ एनडीए गठबंधन की सरकार में शामिल हो गए. अजित को डिप्टी सीएम बनाया गया. छगन भुजबल मंत्री बने और प्रफुल्ल के केंद्र सरकार में शामिल होने के कयास हैं. इस बगावत से शरद पवार की 25 साल पुरानी पार्टी टूट गई और साढ़े साल बाद घर की कलह फिर उभरकर सामने आ गई. इससे पहले नवंबर 2019 में भी अजित ने बगावत की थी और बीजेपी से हाथ मिला लिया था. हालांकि, तब शरद पवार डैमेज कंट्रोल में कामयाब हो गए थे. उन्होंने अजित को मना लिया था, जिसके बाद उन्होंने बीजेपी से समर्थन वापस ले लिया था. लेकिन, इस बार हालात बिल्कुल अलग नजर आ रहे हैं. अब खुलकर बयानबाजी शुरू हो गई है और पार्टी-सिंबल पर कब्जे की लड़ाई चुनाव आयोग तक पहुंच गई है.
2. बिहार में चिराग और पशुपति पासवान
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