
संघ के 100 साल: तो शंकराचार्य होते गोलवलकर...जानें- दूसरे सरसंघचालक ने क्यों नहीं स्वीकारा प्रस्ताव
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शंकराचार्य जैसा प्रतिष्ठित पद संभालने के लिए गुरु गोलवलकर के पास प्रस्ताव आया था. पीएम मोदी अपनी किताब ‘ज्योतिपुंज’ में लिखते हैं,
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक गुरु गोलवलकर ने जैसे चारों शंकराचार्यों को सनातन और भारत की सेवा से जोड़ा था, उतना शायद कोई दूसरा नहीं कर पाया. लेकिन कम लोगों को पता है कि गुरु गोलवलकर के जीवन में ऐसा भी अवसर आया, जब वो खुद भी शंकराचार्य बन सकते थे, लेकिन उन्होंने विनम्रता से मना कर दिया. ये घटना पुरी की गोवर्धन पीठ से जुड़ी है. गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य गोलोक जाने से पहले अपने संभावित उत्तराधिकारी के लिए कुछ नाम लिख गए थे, जिनमें गुरु गोलवलकर का नाम था. लेकिन गुरु गोलवलकर ने इस प्रस्ताव को ये कहकर अस्वीकार कर दिया था कि इस पवित्र पद के योग्य मैं नहीं. शाखा के जरिए मैं समाज की अच्छी सेवा कर सकता हूं.
रंगा हरि की गुरु गोलवलकर की जीवनी में इस तरह की दूसरी घटना की जानकारी मिलती है, वह गुरु गोलवलकर को गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य के उत्तराधिकारियों के नामों में होने की भी जानकारी देते हैं. वह लिखते हैं कि, “जगन्नाथ पुरी की गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य श्रीमद भारती कृष्णातीर्थ अपना उत्तराधिकारी तय करने से पहले ही गोलोक चले गए. हालांकि उन्होंने अपने सम्भावित उत्तराधिकारियों की एक सूची तैयार की हुई थी. इनमें से एक नाम माधव सदाशिव गोलवलकर यानी गुरु गोलवलकर का भी था. उन्होंने पहले ही द्वारिकाधीश पीठ के शंकराचार्य को उनके बाद की समुचित व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी दे रखी थी. जब गुरु गोलवलकर को इसकी सूचना मिली तब वह मई में लगने वाले संघ शिक्षा वर्ग की तैयारियों में जुटे थे. उन्होंने द्वारिकाधीश पीठ के शंकराचार्य को संस्कृत में एक पत्र लिखा, जो उन दिनों बम्बई (मुंबई) प्रवास पर थे”.
इस पत्र में लिखा था कि, “परम पूज्य श्री भारतीकृष्ण तीर्थ की अंतिम इच्छा के रूप में प्रकाशित संभावित उत्तराधिकारी की सूची में मैंने अपना नाम भी देखा. आज तक मैंने कभी ऐसी इच्छा नहीं की. जगद्गुरु के उच्च पद पर आसीन होने के लिए आवश्यक विद्वत्ता, तप, तपस्या आदि जैसे अति महत्वपूर्ण गुणों का मुझमें सर्वथा अभाव है. ऐसे सर्वोच्च गुणों से युक्त कोई विरला महापुरुष ही पूज्य जगद्गुरु पीठ के पद पर आसीन हो सकता है”.
आपकी आज्ञा का पालन ना करने का पाप मुझे लगा हालांकि रंगा हरि लिखते हैं कि उसके बाद भी गुरु गोलवलकर ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ा, उन्हें ये भी अहसास था कि जगदगुरू शंकराचार्य के प्रस्ताव से इनकार करने का अर्थ गलत भी लगाया जा सकता है. सो समय मिलते ही द्वारिकाधीश शंकराचार्य से मुलाकात की और कहा कि, “इससे पहले कि आपकी आज्ञा का पालन ना करने का पाप मुझे लगे, मैं अपना पक्ष भी रखना चाहता हूं”. शंकराचार्य की अनुमति से उन्होंने मना करने का कारण भी बताया कि कैसे डॉ हेडगेवार ने उन्हें जिस लक्ष्य की जिम्मेदारी सौंपी है, वह उसे जीवन भर पूरा करने का संकल्प ले चुके हैं. वह संघ कार्य में पूरा जीवन लगाने की प्रतिज्ञा पहले ही ले चुके हैं. सो ये सम्भव ही नहीं कि इस जीवन में संघ कार्य के अलावा कोई संकल्प या जिम्मेदारी स्वीकार कर पाएं. शंकराचार्य उनसे सहमत थे, फिर भी उनको एक जिम्मेदारी दी कि वो इस कार्य के लिए जयपुर संस्कृत कॉलेज के प्रधानाचार्य चंद्रशेखर शास्त्री से बात करें.
गुरु गोलवलकर ने इसे आज्ञा की तरह लेते हुए गुजरात के प्रांत प्रचारक ब्रह्मदेव से कहकर शास्त्रीजी के साथ एक बैठक रखने के लिए कहा. उसके बाद गोलवलकर खुद जयपुर गए और शास्त्रीजी के घर एक घंटे तक उनसे विस्तार से बातचीत की. चूंकि उन्हें पता था कि शास्त्रीजी के पास शंकराचार्य ने उन्हें केवल संदेशा भेजने के लिए नहीं चुना है बल्कि उस व्यक्ति को परखने के लिए भी भेजा है, सो मुलाकात के बाद उन्हें कहा कि आपको आदरणीय शंकराचार्य ने इस पीठ के पीठाधीश्वर के लिए चुना है तो आपकी विद्वता, ज्ञान, आपके बेदाग चरित्र के चलते चुना है, जिनकी तुलना किसी दूसरे से नहीं की जा सकती. लेकिन मेरी एक छोटी सी प्रार्थना है कि आप इस बड़ी जिम्मेदारी को निभाने से पहले कुछ समय के लिए ध्यान समाधि के लिए जरूर जाएं, दो ढाई महीने के लिए हिमालय जैसी किसी एकांत जगह में जाएं तो बेहतर रहेगा. शास्त्रीजी को शायद वो इस एकांत में इस बड़ी जिम्मेदारी को संभालने से पहले मानसिक रूप से तैयार करना चाहते होंगे और ऐसा ही हुआ भी, समस्या सुलझ भी गई. पीएम मोदी की किताब में भी उल्लेख
गुरु गोलवलकर के जीवन की ये दिलचस्प घटना खुद प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी किताब ‘ज्योतिपुंज’ में लिखी है. वह लिखते हैं कि, “द्वारका पीठ के शंकराचार्य श्री अभिनव सच्चिदानंदजी ने परम पूज्य गुरुजी को संदेश भेजा: 'गुरुजी, शंकराचार्य का पद रिक्त है और इसके लिए आपसे अधिक उपयुक्त कोई नहीं है.' किसी अन्य व्यक्ति के लिए, यह बात अत्यन्त महत्वपूर्ण होती.

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