
लोकसभा-विधानसभा चुनाव साथ कराने की राह में रोड़े ही रोड़े... जानिए किन देशों में पहले से है ऐसा सिस्टम
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कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संसद में बताया है कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाने के लिए संविधान के पांच अनुच्छेद में संशोधन करना होगा. ऐसे में जानते हैं कि एक साथ चुनाव करवाने में क्या-क्या चुनौतियां हैं? क्या ऐसा हो सकता है? और अगर होता है तो इससे फायदा क्या होगा?
क्या देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने चाहिए? इस पर लंबे समय से बहस हो रही है. लेकिन नतीजा अब तक कुछ नहीं निकला है. अब केंद्र सरकार ने बताया कि अगर देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ कराने हैं तो संविधान के पांच अनुच्छेद में संशोधन करना होगा. केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि साथ में चुनाव कराने के लिए अनुच्छेद- 83, 85, 172, 174 और 356 में संशोधन करना होगा.
उन्होंने बताया कि साथ चुनाव करवाने के लिए ईवीएम और पेपर ट्रेल मशीनों की जरूरत भी होगी, जिस पर हजारों करोड़ रुपये खर्च होंगे. उन्होंने बताया कि ईवीएम 15 साल तक काम कर सकती है. ऐसे में अगर एक साथ चुनाव होते हैं तो इनका इस्तेमाल तीन या चार बार ही होगा और फिर 15 साल में बदलने पर बहुत खर्च होगा.
संविधान में क्या संशोधन करना होगा?
- अनुच्छेद-83: इसके मुताबिक, लोकसभा का कार्यकाल पांच साल तक रहेगा. अनुच्छेद- 83(2) में प्रावधान है कि इस कार्यकाल को एक बार में सिर्फ एक साल के लिए बढ़ाया जा सकता है.
- अनुच्छेद-85: राष्ट्रपति को समय से पहले लोकसभा भंग करने का अधिकार दिया गया है.
- अनुच्छेद-172: इस अनुच्छेद में विधानसभा का कार्यकाल पांच साल का तय किया गया है. हालांकि, अनुच्छेद-83(2) के तहत, विधानसभा का कार्यकाल भी एक साल के लिए बढ़ाया जा सकता है.

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