
यौनिकता से मुक्ति, 108 डुबकियां और विजया हवन... नागा दीक्षा की प्रोसेस जान आपकी रूह कांप जाएगी
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नागा साधु बनने की प्रक्रिया में लिंग निष्क्रिय (तंगतोड़) किया जाता है, इससे पहले एक क्रिया पंचकेश (शरीर के सभी भागों के बाल उतारना) होती है. ब्रह्म मुहूर्त में 108 बार की डुबकी और फिर विजया हवन भी इसमें शामिल है.
महाकुंभ-2025 के महा आयोजन का आगाज हो चुका है. प्रयागराज के संगम तट पर श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ा हुआ है. शंख-घंटे-घड़ियाल, आरती की धुन के अलावा कोई और आवाज यहां नहीं सुनाई दे रही है. हर-हर गंगे का घोष संगमघाट पर गुंजायमान है तो वहीं हर-हर महादेव से शिवालय गुलजार हैं. इतने सारे दृश्य और आंखें सिर्फ दो. आखिर दो आंखों से कितना देखा जा सकता है? फिर भी जितना दिखाई दे रहा है, यह सब देखने वाले की याद में जीवन भर दर्ज रहेगा और फिर जब भी वह गंगाघाट और प्रयाग का जिक्र करेगा तो महाकुंभ के इन दृश्यों की अद्भुत, अलौकिक याद रोमांच से भर देगी.
नागा साधुओं का अलग ही रोमांच
महाकुंभ का यह जमघट अपने आप में रोचकता तो जगाता ही है, लेकिन इससे भी अधिक जिज्ञासा जगाते हैं कुंभ में आने वाले अखाड़े और इनके साधु. कोई भभूत लगाए, भस्म रमाए, कोपीन-लंगोट पहने, त्रिपुंड सजाए, शस्त्र उठाए, धूनी रमाए यहां-वहां दिख जाता है. इनमें से कई तो दिगंबर साधु होते हैं, जिन्हें देखकर ये सवाल सहज ही आता है कि हमारी ही तरह हाड़-मांस के शरीर से बने ये लोग आखिर हमसे कितने अलग हैं? उनके इस अवस्था तक पहुंचने की प्रक्रिया है? आखिर कोई साधु जब नागा बनता है तो इसकी दीक्षा कैसे लेता है?
इन सवालों के जवाब कई किताबों और मीडिया रिपोर्ट में मिलते हैं. हालांकि सभी के पास सिर्फ उतनी ही जानकारी है, जितना उन्हें किसी अखाड़े की ओर से जानकारी में बता दिया गया. मशहूर इतिहास लेखक सर यदुनाथ ने इस विषय पर खूब लिखा है. इसी तरह पत्रकार और लेखक धनंजय चोपड़ा ने भी अपनी किताब (भारत में कुंभ) में इस विषय पर डिटेल में बात की है.
नागा संन्यासी बनने की कठिन है प्रक्रिया
किताब की मानें तो नागा संन्यासी बनना, यानी बेहद ही कठिन प्रक्रिया और साधना से गुजरना. यह पूरी प्रक्रिया कोई एक दिन, एक साल या एक बार की बात नहीं है, बल्कि ये सभी कुछ वर्षों की साधना की सतत प्रक्रिया है. इसमें कुछ विधान तो इतने कठिन हैं, कि उनके बारे में जानकार आम आदमी की रूह कांप जाए. नागा साधु बनने की प्रक्रिया में लिंग निष्क्रिय (तंगतोड़) किया जाता है, इससे पहले एक क्रिया पंचकेश (शरीर के सभी भागों के बाल उतारना) होती है. ब्रह्म मुहूर्त में 108 बार की डुबकी और फिर विजया हवन भी इसमें शामिल है.

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