
महीने भर पहले पर कतरने, फिर माफी और अब घर वापसी... आकाश आनंद और मायावती के बीच 'सुलह' के मायने!
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पार्टी सूत्रों की मानें तो ऐसा नहीं है कि मायावती ने यह फैसला अचानक लिया है बल्कि वापसी की पटकथा लिखी गई. जब आकाश आनंद के पिता आनंद कुमार ने नेशनल कोऑर्डिनेटर का पद छोड़ा, तभी से आकाश आनंद के लिए वापसी की राह तलाशी जा रही थी. सब कुछ स्क्रिप्ट के अनुसार तय तरीके से किया गया.
आकाश आनंद को पार्टी से निकाले और केनेशनल कोऑर्डिनेटर के पद से हटाए हुए बमुश्किल महीने भी नहीं गुजरे की उनकी एक बार फिर बीएसपी में वापसी हो गई है. इस बार यह वापसी सार्वजनिक तौर माफी मांगने और मायावती के द्वारा सार्वजनिक तौर पर माफ कर देने के ऐलान के बाद हुई है. दरअसल, रविवार शाम तब सरगर्मियां बढ़ गईं जब X पर एक के बाद एक चार पोस्ट आकाश आनंद ने किए. उन्होंने बसपा चीफ मायावती से गलती के लिए क्षमा याचना करते हुए लिखा कि उनसे गलती हो गई है. आकाश आनंद ने मायावती से अपील करते हुए लिखा कि उनसे गलती हो गई है उन्हें क्षमा करें.
इसके कुछ देर बाद मायावती का एक X पोस्ट आया, जिसमें उन्होंने आकाश आनंद को माफ कर देने का ऐलान किया. लेकिन यह भी साफ किया कि उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा. वह इस बात पर अटल हैं और आकाश के ससुर अशोक सिद्धार्थ को कोई माफी नहीं मिलेगी, उनकी गलतियां अक्षम्य है.
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इसके बाद सबसे बड़ा सवाल यह कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि अचानक ही घटनाक्रम बदला और मायावती का अपने भतीजे के लिए दिल पसीज गया. अचानक ही आकाश आनंद ने अपनी पुरानी गलतियों के लिए माफी मांगी और तुरंत बाद मायावती ने माफ भी कर दिया. दरअसल, बसपा के सूत्रों की मानें तो आकाश आनंद की वापसी की पटकथा उन्हें हटाए जाने के तुरंत बाद से ही तैयार की जा रही थी. मायावती भी पार्टी में अकेली पड़ती जा रही थीं और आकाश आनंद को लेकर पार्टी के कैडर का दबाव भी बढ़ रहा था.
अकेले पड़ती जा रही थीं मायावती?
जिस पुरजोर तरीके से समाजवादी पार्टी लगातार बसपा के कैडर और नेताओं में सेंध लगा रही थी, बीजेपी आंबेडकर के नाम को एग्रेसिव तरीके से भुना रही थी, उससे मायावती को आकाश की जरूरत महसूस होने लगी ताकि पार्टी का निराश कैडर सपा और चंद्रशेखर की राह न पकड़ ले. आकाश को निकाले जाने के बाद हर काम मायावती के जिम्मे में आ चुका था. चाहे दूसरी पार्टियों को जवाब देना हो, बसपा के खिलाफ बन रहे नैरेटिव का काउंटर करना हो या फिर पार्टी की मजबूती के लिए संगठन का काम करना हो. मायावती कई मामलों में अकेली पड़ती जा रही थीं. पार्टी का कोई नेता या कैडर उनके फैसले के खिलाफ बोल तो नहीं सकता, लेकिन उनके भीतर के उत्साह की कमी बसपा सुप्रीमो को नजर आने लगी थी.

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