
'भारत को 48 घंटे में घुटनों पर लाने की हसरत पाले बैठा था PAK, 8 घंटे में हुआ विफल', बोले CDS अनिल चौहान
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सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने ऑपरेशन सिंदूर के अनुभव साझा किए. उन्होंने कहा कि 48 घंटे की उम्मीद महज 8 घंटे में पूरी हुई और फिर दुश्मन ने बातचीत का प्रस्ताव दिया. उन्होंने युद्ध में तकनीक, रणनीति और राजनीतिक पहलुओं पर जोर चर्चा की, साथ ही यह बताया कि भविष्य के युद्ध अब साइबर और रोबोटिक्स तक पहुंच गए हैं.
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने पुणे विश्वविद्यालय में "भविष्य के युद्ध और युद्धकला" विषय पर अपने संबोधन में ऑपरेशन सिंदूर पर महत्वपूर्ण बातें बताईं. उन्होंने कहा कि भारत ने 48 घंटे की लड़ाई 8 घंटे में ही पूरी कर ली, और इसी दौरान पाकिस्तान ने बातचीत का प्रस्ताव पेश किया. उन्होंने बताया कि यह ऑपरेशन दर्शाता है कि युद्ध केवल स्ट्राइक नहीं, बल्कि राजनीति का भी हिस्सा होता है.
सीडीएस ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर में जहां युद्ध और राजनीति एक साथ चल रहे थे, वहीं हमें बेहतर काउंटर ड्रोन सिस्टम होने का फायदा मिला. सीडीएस ने कहा कि 10 मई की रात 1 बजे पाकिस्तान युद्ध हार गया था. 48 घंटो की लड़ाई हमने 8 घंटे में खतम कर ली, फिर उन्होंने फोन उठाया और कहा कि वे बात करना चाहते हैं.
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सीडीएस अनिल चौहान ने कहा, "हम प्रोफेशनल फोर्सेस के रूप में नुकसान और झटकों से प्रभावित नहीं होते. हमें अपनी गलतियों को समझकर सुधारना चाहिए और पीछे नहीं मुड़ना चाहिए." उन्होंने स्पष्ट किया कि युद्ध में नुकसान से ज्यादा नतीजा मायने रखता है. उन्होंने बताया कि ऑपरेशन सिंदूर एक ऐसी युद्ध नीति का उदाहरण था जिसमें काइनेटिक और नॉन-काइनेटिक दोनों तरह के युद्ध कौशल इस्तेमाल हुए.
युद्ध में उभरे ट्रेंड्स, ब्रह्मोस जैसी तकनीकों का अहम योगदान!
पहला: सेंसर टेक्नोलॉजी इस युद्ध के दौरान काफी अहम रहा, हमारे पास नेचुरल और ह्युमन मेड दोनों तरह के सेंसर हैं, न सिर्फ रेंज, बल्कि ह्युमन मेड सेंसर भी कई तरह के होते हैं, और इसकी तैनाती भी अलग-अलग जरूरतों पर की जाती है.

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