
बढ़ रहा तापमान, पिघल रहे ग्लेशियर, बर्फबारी और बारिश में कमी से पश्चिमी हिमालय में संकट
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पश्चिमी हिमालय इस समय भीषण सूखे जैसी स्थिति से जूझ रहा है. लगातार बारिश और बर्फबारी की कमी से हालात गंभीर नजर आ रहे हैं. अब तक पूरे मौसम में केवल एक बार 6 अक्टूबर को बारिश और बर्फबारी देखी गई है. सर्दियों में बर्फ से ढके दिखने वाले पहाड़ अब सूखे और खाली दिखाई दे रहे हैं.
पहाड़ों पर बढ़ते तापमान और बर्फबारी में कमी के कारण पहाड़ सूख रहे हैं. बर्फ लंबे समय तक पहाड़ों पर नहीं टिक पा रही है. बर्फबारी और बारिश में लगातार कमी के कारण स्नो कवर जमा नहीं हो पा रहा. इससे सतह तेजी से पिघल रही है और पहाड़ और भी ज्यादा संवेदनशील बनते जा रहे हैं.
मौसम पूर्वानुमान एजेंसी Skymet के मुताबिक, इस बार का सीजन सामान्य मौसम चक्र से बिल्कुल अलग रहा है. पश्चिमी विक्षोभ आमतौर पर अक्टूबर मध्य से पश्चिमी हिमालय को प्रभावित करना शुरू कर देते हैं. नवंबर से ही बारिश और बर्फबारी देखने को मिल जाती है. दिसंबर में एक या दो शक्तिशाली पश्चिमी विक्षोभ मध्यम से भारी बर्फबारी कराते हैं. लेकिन इस साल मौसम ऐसा नहीं रहा है, और पिछले साल 2024 में भी इसी तरह का शुष्क पैटर्न देखा गया था.
दिसंबर में भी नहीं राहत की उम्मीद दिसंबर के अंत तक भी कोई बड़ी राहत की उम्मीद नजर नहीं आ रही है. हालांकि, 20 और 21 दिसंबर के आसपास एक सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ आने की संभावना है, लेकिन इसका असर मुख्य रूप से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख तक सीमित रह सकता है. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में भी केवल कुछ चुनिंदा इलाकों में हल्की बारिश या बर्फबारी की संभावना है, जबकि उत्तराखंड पूरी तरह सूखा रह सकता है.
पश्चिमी हिमालय के ग्लेशियरों से निकलने वाली नदियों में पानी के बहाव पर इस लंबे सूखे का असर देखा जा सकता है. बारिश और बर्फबारी की कमी से चलते जल स्रोतों पर सीधा असर हो रहा है.
कृषि पर भी असर मौसमीय संकट का सबसे गहरा असर कृषि और बागवानी पर दिखाई दे रहा है. सेब की खेती विशेष रूप से प्रभावित हो रही है. बर्फबारी में कमी के कारण आने वाले सीजन की पैदावार पर संकट नजर आ रहा है. इसके अलावा, पर्यटन क्षेत्र भी असामान्य मौसम से प्रभावित हुआ है. लोकप्रिय हिल स्टेशन और स्कीइंग रिसॉर्ट्स में बर्फ की कमी के कारण पर्यटक नहीं जा रहे हैं.
ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं और नई बर्फबारी न होने से उनका पुनर्भरण नहीं हो पा रहा है. लगातार बारिश और बर्फबारी में कमी के कारण केवल पहाड़ों पर ही नहीं बल्कि मैदानी इलाकों में भी संकट आ सकता है, जो हिमालयी नदियों पर निर्भर हैं.

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