
'बंद हो My Lord जैसे शब्दों का इस्तेमाल', PM के एडवाइजर ने जताई आपत्ति, अदालतों में लंबी छुट्टियों पर भी उठाए सवाल
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प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) के सदस्य संजीव सान्याल ने देश की न्यायिक व्यवस्था को 'विकसित भारत' की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बताया. उन्होंने न्यायपालिका में लंबी छुट्टियों पर भी आपत्ति जताई.
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) के सदस्य संजीव सान्याल ने देश की न्यायिक व्यवस्था को 'विकसित भारत' के लक्ष्य में सबसे बड़ी रुकावट बताया है. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर न्यायिक प्रणाली में बड़े सुधार नहीं हुए, तो अन्य क्षेत्रों में किए गए सुधार 'विकसित भारत' के सपने को पूरा करने के लिए नाकाफी साबित होंगे. उन्होंने यह टिप्पणी शनिवार को 'न्याय निर्माण सम्मेलन 2025' में अपने संबोधन के दौरान की. इस इवेंट में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मनमोहन और जस्टिस पंकज मिथल भी मौजूद थे.
संजीव सान्याल ने कहा कि देश के पास 'विकसित भारत' बनने के लिए केवल 20-25 साल का समय है. इसके बाद हमारी जनसंख्या भी जापान और यूरोप की तरह उम्रदराज हो जाएगी. इन दो दशकों में हमें हर मोर्चे पर तेजी से विकास करना होगा. भारत हाल ही में दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना है और सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था है. लेकिन इस विकास को समृद्धि में बदलने के लिए समय सीमित है.
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मध्यस्थता का नियम सही था, लेकिन उल्टा पड़ा
उन्होंने न्यायिक व्यवस्था में विवादों के समाधान में लगने वाले लंबे समय और कानून एवं न्याय को समय पर लागू नहीं कर पाने को प्रमुख समस्या बताया. संजीव सान्याल ने '99-1 समस्या' का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि असल में सिर्फ 1% लोग नियमों का गलत इस्तेमाल करते हैं. लेकिन हमें भरोसा नहीं है कि अदालतें ऐसे मामलों को जल्दी सुलझा देंगी, तो सरकार सारे नियम ऐसे बनाती है कि उस 1% गलती को भी रोका जा सके. नतीजा ये होता है कि बाकी 99% ईमानदार लोग भी उन जटिल नियमों में फंस जाते हैं.
संजीव सान्याल ने कमर्शियल कोर्ट्स एक्ट, 2015 की धारा 12ए के तहत अनिवार्य मध्यस्थता के नियम का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि मुकदमा दायर करने से पहले अनिवार्य मध्यस्थता का नियम सही सोच के साथ लाया गया था, लेकिन असल में उल्टा असर कर गया. कमर्शियल कोर्ट एक्ट की सेक्शन 12A कहती है कि अदालत में जाने से पहले पक्षकारों के बीच मध्यस्थता के जरिए विवाद सुलझाने का प्रयास करना होगा. लेकिन मुंबई की अदालतों के आंकड़े दिखाते हैं कि 98–99% मामलों में मध्यस्थता फेल हो जाती है. इस तरह मामला कोर्ट में ही जाता है, लेकिन उससे पहले 6 महीने का समय मध्यस्थता के प्रयासों में बीत जाता है. उन्होंने कहा कि 2023 में इसे सिविल मामलों के लिए भी लागू करने की कोशिश हुई, लेकिन आलोचनाओं के बाद यह रुक गया.

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