
पाकिस्तान की दगाबाजी को किसी और ने नहीं खुद नवाज शरीफ ने माना है! लाहौर डिक्लरेशन को फेल करने की साजिश किसने रची?
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नवाज शरीफ ने 25 साल बाद एक गलती स्वीकार की है. ये गलती पाकिस्तान की दगाबाजी की है. 20 फरवरी 1999 को दिल्ली से जब सुनहरी रंग की 'सदा-ए-सरहद' (सरहद की पुकार) लग्जरी बस अटारी बॉर्डर की ओर चली तो लगा कि 1947 में अलग हुए दो मुल्क अपना अतीत भूलाकर आगे चलने को तैयार हैं. लेकिन ये भावना एकतरफा थी. पाकिस्तान आर्मी के मन में तो कुछ और चल रहा था.
'मैं अपने साथी भारतीयों की सद्भावना और आशा लेकर आया हूं जो पाकिस्तान के साथ स्थायी शांति और सौहार्द्र चाहते हैं. मुझे पता है कि यह दक्षिण एशिया के इतिहास में एक निर्णायक क्षण है और मुझे उम्मीद है कि हम चुनौती का सामना करने में सक्षम होंगे.' भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर की धरती पर जब अपना ये संबोधन दिया था तो वे इतिहास के बोझ से मुक्त होकर नया इतिहास लिखना चाह रहे थे. लेकिन पाकिस्तान के सियासतदां और आर्मी भारत को लेकर अपने पूर्वाग्रहों से कभी मुक्त नहीं हो पाए.
वाजपेयी फरवरी की गुलाबी सर्दियों में लाहौर पहुंचे थे इसके महज दो-तीन महीने बाद ही अप्रैल-मई में पाकिस्तान ने भारत के साथ दगा कर दिया. पाकिस्तान को इस दगाबाजी को स्वीकार करने में 25 वर्ष लग गए. मंगलवार को अपनी पार्टी PML-N की जनरल काउंसिल की बैठक में भाषण देते हुए नवाज शरीफ ने कहा, "28 मई 1998 को पाकिस्तान ने पांच परमाणु परीक्षण किए थे. उसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी साहब यहां आए थे... याद है न आपको, या आपकी याद्दाश्त कमजोर है... और हमसे यहां वादा किया. ये अलग बात है कि हमने वादे के खिलाफ काम किया और उसमें हमारा कसूर है, इसमें हम कसूरवार हैं."
नवाज शरीफ ने भारत के साथ रिश्ते सुधारने के संकेत देते हुए कहा कि ये अच्छी बात है कि उनके भाई और पाकिस्तान के मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ अब भारत के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश कर रहे हैं.
लाहौर समझौता भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में वो लिंक था जिससे दक्षिण एशिया की राजनीति और किस्मत बदल सकती थी. लेकिन पाकिस्तान की आर्मी ने इन दोनों देशों के बीच सहज और दोस्ताना रिश्तों को कभी तरजीह नहीं दी.
अतीत भूलाकर आगे बढ़ने को हुए तैयार
20 फरवरी 1999 को दिल्ली से जब सुनहरी रंग की 'सदा-ए-सरहद' (सरहद की पुकार) लग्जरी बस अटारी बॉर्डर की ओर चली तो लगा 1947 में अलग हुए दो मुल्क अपना अतीत भूलाकर आगे चलने को तैयार हैं. लेकिन ये भावना एकतरफा थी. पाकिस्तान आर्मी के मन में तो कुछ और चल रहा था. भारत की ओर से इस बस में न सिर्फ राजनेता बल्कि खिलाड़ी, कलाकार, गीतकार और नृत्यांगना भी शामिल थे. बस में वाजपेयी की कैबिनेट के साथियों के अलावा, एक्टर देवानंद, शत्रुघ्न सिन्हा, कपिलदेव, जावेद अख्तर जैसी हस्तियां सवार थी.

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