
नहीं पता TV क्या है, युद्ध की भी खबर नहीं... 40 साल से घने जंगल में था परिवार, ऐसे हुई खोज
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यहां मिले इस बूढ़े शख्स की पत्नी की साल 1961 में ठंड और भूख के कारण मौत हो गई थी. ठंड से परेशान होकर उसने अपने जूते का लैदर तक खा लिया था.
ये कहानी एक ऐसे परिवार की है, जो दुनिया से एकदम कटकर रह रहा था. उसे नहीं पता कि दुनिया में क्या कुछ चल रहा है. जब दूसरे विश्व युद्ध को लेकर दुनिया में कोहराम मचा हुआ था, तब भी इस परिवार को इसकी भनक नहीं लगी. ये लोग साइबेरिया की एक सुनसान जगह में झोपड़ी बनाकर रह रहे थे. इन्हें वैज्ञानिकों के एक ग्रुप ने पहली बार देखा. ये मामला साल 1978 का है.
डेली स्टार की रिपोर्ट के अनुसार, तब भूवैज्ञानिकों का एक ग्रुप हेलीकॉप्टर से साइबेरिया के घने जंगलों में गया था. इनका उद्देश्य यहां मौजूद खनिज संपदा का पता लगाना था. संयोग से हेलीकॉप्टर के पायलट ने किसी भी शहर या गांव से 155 मील दूर एक साफ जगह देखी. वो दिखने में इंसानी बस्ती जैसी थी.
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जब पूरी टीम वहां पहुंची तो उन्हें लायकोव परिवार मिला. यहां कार्प नाम का एक बूढ़ा शख्स और उसके चार बच्चे थे. उसकी पत्नी अकुलिना की 1961 में ठंड और भूख के कारण मौत हो गई थी. वो ऐसी स्थिति में 40 साल से अधिक समय तक जीवित रही. ठंड से परेशान होकर उसने अपने जूते का लैदर तक खा लिया था.
6000 फीट की ऊंचाई पर था परिवार
ये परिवार घने जंगल में 6000 फीट की ऊंचाई पर एक पहाड़ पर मिला. जहां आमतौर पर केवल भालू, भेड़िये और दूसरे जंगली जानवर ही जीवित रह पाते हैं. इन्होंने दुनिया से अपना रिश्ता तोड़ लिया था. इन्हें दूसरे विश्व युद्ध, मून लैंडिंग्स, टीवी और मॉडर्न मेडिसिन के बारे में कुछ नहीं पता था. भूविज्ञानी गैलिना पिस्मेंस्काया यहां लौह अयस्क की खोज करने आई थीं. उन्होंने उस वक्त के बारे में बताया, जब वो इस परिवार से मिलीं.

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