
टेस्ट में मैच-विनर, व्हाइट-बॉल में क्यों बेअसर? टीम इंडिया के स्टार ऋषभ पंत की उलझी कहानी
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ऋषभ पंत टेस्ट क्रिकेट में भारत के सबसे खतरनाक मैच-विनरों में गिने जाते हैं, जिनकी मौजूदगी भर से मैच का रुख बदल जाता है, लेकिन व्हाइट-बॉल क्रिकेट में वही पंत असमंजस और अस्थिरता से जूझते नजर आते हैं...
भारतीय क्रिकेट के मैदान पर जब ऋषभ पंत बल्लेबाजी के लिए आते हैं, तो विपक्षी टीम के खिलाड़ियों के लिए एक तरह का मानसिक दबाव बन जाता है. कप्तान अपने फील्डर्स को पीछे खींच लेते हैं और गेंदबाज अक्सर वह लाइन-लेंथ भूल जाते हैं, जो उन्होंने सुबह से साधी होती है. लंबे समय पहले, 'बैजबॉल' शब्द के आने से पहले ही पंत खुद ही एक मनोवैज्ञानिक हथियार बन चुके थे.
पंत ने टेस्ट क्रिकेट में अपने असीमित आक्रामक अंदाज से कई मुकाबले पलट दिए. चाहे वह गाबा का आखिरी दिन का चमत्कार हो या अहमदाबाद में पहले इनिंग्स का तूफानी प्रहार, पंत हर परिस्थिति में खुद की शर्तों पर खेलते रहे. गेंद की उम्र या पिच की स्थिति उनके खेल को कभी रोक नहीं पाई.
लेकिन, वही बल्लेबाज जब व्हाइट-बॉल क्रिकेट में उतरता है, तो तस्वीर कुछ अलग नजर आती है.
पंत ने 2017 से अब तक 31 वनडे और 76 टी20 इंटरनेशनल मैच खेले हैं. वनडे में उनका एवरेज 33.50 है, जबकि टी20 में यह 23.25 तक गिर जाता है. भारतीय बल्लेबाजों में जो शीर्ष सात में 50 से अधिक टी20 मैच खेल चुके हैं, उनमें उनका एवेरज सबसे कम है.
आईपीएल में भी कहानी कुछ अलग नहीं है. 9 सीजन में पंत ने केवल चार बार 400 रनों का आंकड़ा पार किया. आईपीएल 2025 में 27 करोड़ रुपये की कीमत के साथ, उन्होंने 269 रन बनाए, जबकि स्ट्राइक रेट 140 से कम रहा.
पहले उन्हें ऑल-फॉर्मेट क्रिकेट का भविष्य कहा जाता था, लेकिन अब पंत धीरे-धीरे व्हाइट-बॉल क्रिकेट में अपनी जगह खोते नजर आ रहे हैं. जुलाई 2024 के बाद उन्होंने कोई टी20 अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेला और आखिरी वनडे अगस्त में खेला. हाल ही में दक्षिण अफ्रीका दौरे में उनका नाम टीम में था, लेकिन खेलने का मौका नहीं मिला. चयनकर्ताओं ने अब केएल राहुल और अन्य युवाओं की ओर रुख किया है.

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