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झुग्गी में रही, सड़क पर फूल बेची, अब ये लड़की सोशल मीडिया पर छाई!
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सोशल मीडिया पर एक लड़की की खूब चर्चा हो रही है. इनका नाम सरिता माली है. उन्होंने जेएनयू के बारे में कहा कि यहां आकर जिंदगियां बदल सकती हैं.
सोशल मीडिया पर एक लड़की का पोस्ट वायरल हो रहा है. इस पोस्ट में लड़की ने अपने अब तक के सफर के बारे में बताया है. उन्होंने बताया कि एक समय वह कैसे सड़क किनारे फूल बेचा करती थीं. झोपड़पट्टी में रहती थीं. फिर वह जेएनयू तक पहुंची. और अब वह आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका जा रही हैं.
लड़की का नाम सरिता माली है. वह 28 साल की हैं. सरिता ने बताया कि उनका परिवार मूल रूप से यूपी के जौनपुर का रहने वाला है. लेकिन उनके पिता चाइल्ड लेबर बनकर मुंबई चले गए थे. सरिता का जन्म और परवरिश मुंबई के स्लम में हुई. 10 बाई 12 की जगह पर उनके परिवार के छह लोग रहा करते थे. सरिता ने कहा कि ग्रेजुएशन की पढ़ाई तक वह स्लम में ही रहीं. इसके बाद वह जेएनयू आ गईं.
सरिता को मिला 'चांसलर फ़ेलोशिप' सरिता ने अपने बारे बताते हुए लिखा- अमेरिका के दो विश्वविद्यालयों में मेरा चयन हुआ है, पहला- यूनिवर्सिटी ऑफ कैलफोर्निया और दूसरा- यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंग्टन. मैंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया को वरीयता दी है. मुझे इस यूनिवर्सिटी ने मेरी मेरिट और अकादमिक रिकॉर्ड के आधार पर अमेरिका की सबसे प्रतिष्ठित फ़ेलोशिप में से एक 'चांसलर फ़ेलोशिप' दी है.
मुंबई की झोपड़पट्टी, जेएनयू , कैलिफ़ोर्निया, चांसलर फ़ेलोशिप,अमेरिका और हिंदी साहित्य... कुछ सफ़र के अंत में हम भावुक हो उठते हैं. क्योंकि ये ऐसा सफ़र है जहां मंजिल की चाह से अधिक उसके साथ की चाह अधिक सुकून देती हैं. हो सकता है, आपको यह कहानी अविश्वसनीय लगे लेकिन यह मेरी कहानी है मेरी अपनी कहानी. मैं जिस वंचित समाज से आई हूं, वो भारत के करोड़ो लोगो की नियति है. लेकिन आज यह एक सफल कहानी इसलिए बन पाई है, क्योंकि मैं यहां तक पहुंची हूं.
‘मेरे पिताजी सिग्नल्स पर खड़े होकर फूल बेचते हैं’
जब आप किसी अंधकारमय समाज में पैदा होते हैं, तो उम्मीद की वह मध्यम रौशनी जो दूर से रह-रहकर आपके जीवन में टिमटिमाती रहती है, वही आपका सहारा बनती है. मैं भी उसी टिमटिमाती हुई शिक्षा रूपी रौशनी के पीछे चल पड़ी. मैं ऐसे समाज में पैदा हुयी जहां भुखमरी, हिंसा, अपराध, गरीबी और व्यवस्था का अत्याचार, हमारे जीवन का सामान्य हिस्सा था.
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