खोया जनाधार कैसे वापस लाएगी बसपा? इमरजेंसी मीटिंग से निकले संदेश को 7 Points में समझें
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मायावती ने निकाय चुनाव के परिणामों और लोकसभा चुनाव की रणनीति को लेकर गुरुवार को यूपी में सभी स्तर के पदाधिकारियों के साथ बैठक की थी. इस दौरान उन्होंने कहा कि यूपी के लोग गरीबी, लाचारी, प्रदेश के पिछड़ेपन को दूर करके अपनी बेहतरी व परिवार के लिए बदलाव चाहते हैं, ऐसे में सत्ता परिवर्तन ही सही विकल्प होगा.
लोकसभा, विधानसभा के बाद अब निकाय चुनाव... यूपी में हर स्तर पर बसपा का प्रदर्शन निराशाजनक ही रहा है जा रहा है. उसका कोर वोटर भी अब दूसरे दलों में खिसकने लगा है. यही वजह है कि 2007 के विधानसभा चुनाव में जहां मायावती को 30.43% वोट मिले थे, 2023 के निकाय चुनाव में यह घटकर 8.81% पर आ गया है. निकाय चुनाव के परिणामों की समीक्षा करने और लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर चर्चा करने के लिए मायावती ने गुरुवार को यूपी स्टेट के सभी छोटे-बड़े पदाधिकारियों की विशेष बैठक बुलाई. उन्होंने बैठक में जोनल कोआर्डिनेटरों, मुख्य मंडल प्रभारी, जिला बामसेफ संयोजक और सभी जिलाध्यक्षों को बुलाया. इस बीच मायावती का एक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इस फोटो में बीएसपी सुप्रीमो कुर्सी पर बैठी नजर आ रही हैं, वहीं उनके सभी कार्यकर्ता खड़े हैं. इस फोटो के राजनीतिक गलियारों में कई मायने निकाले जा रहे हैं. आइए 7 पॉइंट्स से समझते हैं बीएसपी की चिंता, चुनौतियों और भविष्य की रणनीति के बारे में...
बीएसपी का इस निकाय चुनाव में प्रदर्शन पिछली बार की तुलना में और खराब रहा. इस बार उनके खाते में मेयर की एक सीट भी नहीं आई, जबकि पिछली बार पार्टी ने दो सीटें जीती थीं. इसी तरह पिछली बार उसके पास 29 नगर पालिका परिषद अध्यक्ष थे जबकि इस बार यह संख्या घटकर 16 हो गई, नगर पंचायत अध्यक्ष 45 से घटकर 37 रह गए. इसी तरह पिछली बार उसके बाद 627 पार्षद थे, जिनकी संख्या इस बार घटकर 544 हो गई है.
- 'वोट हमारा राज तुम्हारा' अब नहीं चलेगा. इसके खिलाफ बसपा गांव-गांव अभियान चलाएगी.
- यूपी निकाय चुनाव में भाजपा के साम, दाम, दण्ड, भेद आदि अनेकों हथकंडो के इस्तेमाल के साथ सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग से बीएसपी चुप होकर बैठने वाली नहीं है, बल्कि वक्त आने पर इसका जवाब लोकसभा चुनाव में जनता देगी. देश में बेरोजगारी महंगाई और गलत सरकारी नीति से जनता को त्रस्त है.
- तमाम विपरीत हालात का सामना करते हुए बीएसपी पर भरोसा करके पार्टी उम्मीदवारों को वोट करने के लिए लोगों का तहेदिल से आभार व शुक्रिया. अगर यह चुनाव भी फ्री एंड फेयर होता तो नतीजों की तस्वीर कुछ और होती. बैलेट पेपर से चुनाव होने पर बीएसपी मेयर चुनाव भी जरूर जीतती.
- बीजेपी चाहे जो दवा करे, सच यह है कि ओबीसी आरक्षण महिला सीटों के आरक्षण के साथ-साथ शुरू से अंत तक निकाय चुनाव को हर तरह से मैनेज और मैनिपुलेशन किया गया.
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