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क्या सिल्क्यारा सुरंग बनाने में हुई प्रकृति और साइंस की अनदेखी? जानिए हादसे की असली वजह
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16 दिन सुरंग में फंसे रहे 41 मजदूर. फंसे भी क्यों? क्योंकि सुरंग अंदर ढह गई थी. क्या नवयुग इंजीनियरिंग द्वारा सुरंग के खनन में विज्ञान, नियम और प्रकृति की अनदेखी की गई है. इंडिया टुडे के ओपन सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) टीम ने इसका विश्लेषण किया. जानिए इस हादसे की असली वजह...
इंडिया टुडे ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) टीम ने उत्तराखंड के उत्तरकाशी में बन रही सिल्क्यारा सुरंग हादसे की जांच की. जिसमें कई तरह के नियमों की अनदेखी सामने आई है. ये अनदेखी प्रकृति, विज्ञान और नियमों के साथ की गई है. चार धाम परियोजना के तहत बन रही इस 4.5 किलोमीटर लंबी सुरंग का मकसद था तीर्थयात्रा को सुगम बनाना.
हालांकि, इस सुरंग ने 41 मजदूरों का जीवन संकट में डाल दिया. इस सुरंग को नेशनल हाइवे एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनवा रही है. सवाल ये उठता है कि किस तरह के नियमों का उल्लंघन किया गया. या फिर उन्हें नजरअंदाज किया गया. असल में उत्तरकाशी ऊपरी हिमालयी इलाके में है. यह मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT) से नजदीक है.
MCT यानी भारतीय टेक्टोनिक प्लेट और यूरेशियन प्लेट के मिलने वाली जगह पर पैदा होने वाली ऊर्जा. ये पूरा इलाका 2000 किलोमीटर लंबा है. यानी हिमालय के उत्तरपश्चिम से दक्षिणपूर्व की तरफ फैला हुआ है. यहां लगातार दोनों प्लेटें एकदूसरे को धकेलती रहती है, जिसकी वजह से थ्रस्ट पैदा होता है. ऊर्जा निकलती रहती है. भूकंप आते रहते हैं.
कैसी है उत्तरकाशी की भौगोलिक स्थिति?
India Today ने जियोलॉजिस्ट प्रो. डॉ. सीपी राजेंद्रन से उत्तरकाशी और उसके आसपास की भौगोलिक स्थिति के बारे में जानकारी ली. प्रो. राजेंद्रन ने बताया कि इस इलाके में 1803 में 7.8 तीव्रता और 1991 में 7 तीव्रता का भूकंप आया था. यहां पर भूकंपीय गतिविधिया बहुत ज्यादा होती हैं. जहां तक बात है सिल्क्यारा-बड़कोट सुरंग की, तो इसके नीचे ही बड़कोट थ्रस्ट है. यानी एक प्रमुख फॉल्ट लाइन. यहां पर सुरंग की स्थिरता पर भरोसा नहीं कर सकते.
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