
आरक्षण की आग से खेलतीं सुप्रिया सुले, Gen-Z से कितना मिलेगा सपोर्ट?
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सुप्रिया सुले ने एक मीडिया हाउस में कुछ छात्रों से बात करते हुए आरक्षण के प्रति अपने दिल के उदगार को व्यक्त कर दिया. जाहिर है कि उन्हें नई पीढ़ी का सपोर्ट तो मिल रहा है पर उनकी बात पर उन्हें न परिवार में सपोर्ट मिलने वाला है न ही पार्टी का.
जिस देश में आरक्षण का विरोध करना जनता की नजरों में ब्लास्फेमी जैसा अपराध हो वहां ओबीसी समाज से आने वाली एक महिला नेता ने ऐसा बयान दिया है जिससे भारत की राजनीतिक पार्टियों का गला सूख गया है. एक ऐसी नेता जिसकी पार्टी का मूल मराठा और ओबीसी वोटर्स के बीच से आता है, जिसके पिता देश के पहले मुख्यमंत्री थे जिन्होंने मंडल कमीशन की रिपोर्ट अपने राज्य में लागू करने का साहस दिखाया था. महाराष्ट्र ही नहीं पूरे देश की ओबीसी राजनीति की धुरी माने जाने वाले विपक्ष की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने आरक्षण के खिलाफ ऐसा बयान देने का साहस दिखाया है जो न उनका परिवार कबूल करेगा और न ही उनकी पार्टी. जाहिर है कि उनके बयान के बाद सोशल मीडिया पर राजनीतिक हलचल मची हुई है. लोग उन्हें या तो गाली दे रहे हैं या उनकी जय जयकार कर रहे हैं.
सुप्रिया एक मीडिया हाउस के कॉन्क्लेव में भाग ले रही थीं. वहां उन्होंने बोलते हुए आरक्षण पर एक साहसी बयान दिया, जिसपर भारतीय राजनीति में बवाल होना तय था. उन्होंने कहा कि आरक्षण का लाभ केवल उन लोगों को मिलना चाहिए जिन्हें वास्तविक जरूरत है. शिक्षित और सक्षम परिवारों को आरक्षण मांगने में शर्मिंदगी महसूस होनी चाहिए. यह उन गरीबों के लिए है, जिन्हें शिक्षा का अवसर नहीं मिला.
सुले ने आर्थिक आधार पर आरक्षण का समर्थन जताया, जातिगत भेदभाव को स्वीकार करते हुए कहा, जातिगत आरक्षण तब तक जरूरी है, जब तक सामाजिक भेदभाव खत्म न हो. उन्होंने क्रीमी लेयर (संपन्न वर्ग) को आरक्षण से बाहर करने पर जोर दिया और उदाहरण दिया कि मुंबई में मेरा बच्चा अच्छे स्कूल में पढ़ता है, लेकिन चंद्रपुर का होनहार अवसर से वंचित है.
सुले जिस कार्यक्रम में बोल रही थीं उन्होंने खुद वहां उपस्थित Gen Z से जानना चाहा कि जो वो कह रही हैं उससे कितने प्रतिशत लोग सहमत हैं. सुले को संतोष हुआ कि उनकी बात को सपोर्ट करने वालों में 60% Gen Z थे . सुले ने कहा कि मैं Gen Z से जुड़ाव महसूस कर रही हूं . और आज की रात उन्हें अच्छी नींद आएगी.
क्या सुप्रिया सुले की राजनीति को खत्म कर देगा, आरक्षण विरोधी होने का ठप्पा
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