
World Health Day 2023: कोरोना के बाद भारतीयों में तेजी से बढ़ रहीं ये 8 बीमारियां, जानें कारण और बचाव
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हर साल विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का इस दिन को मनाने के पीछे का उद्देश्य है कि दुनिया भर में लोग सेहत से जरूरी बातों पर ध्यान दें और स्वस्थ जीवन गुजारें. आज वर्ल्ड हेल्थ डे पर हम आपको उन आठ क्रॉनिक बीमारियों के बारे में बता रहे हैं जो कोरोना के बाद बेहद कॉमन हो चुकी हैं और उनसे पीड़ित मरीजों की संख्या दिन पर दिन बढ़ रही है.
हर साल सात अप्रैल को पूरी दुनिया में वर्ल्ड हेल्थ डे (World Health Day) मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य दुनिया भर के लोगों को स्वास्थ्य और मेडिकल क्षेत्र में हो रही नई-नई प्रगति के प्रति जागरूक करना है. इस साल वर्ल्ड हेल्थ डे 'Health for All' थीम पर मनाया जा रहा है. भारत में पिछले कुछ हफ्तों से कोरोना के मामले तेजी बढ़ रहे हैं हालांकि अब इस वायरस को उतना खतरनाक नहीं माना जाता जैसे पहले माना जाता था लेकिन कोरोना से उबर चुके लोगों में लॉन्ग कोविड सिम्पटम्स और कई बीमारियां नई चुनौती के रूप में सामने आई हैं.
लोगों के स्वास्थ्य पर लंबे समय तक कोरोना से पड़ने वाले प्रभाव के बारे में कुछ भी निश्चित तौर पर कह पाना मुश्किल है. लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पिछले तीन सालों में इस महामारी ने ना केवल लोगों के शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित किया है.
कई रिसर्च में वायरस से हृदय, फेफड़े, गुर्दे और शरीर के अन्य अंगों पर पड़ने वाले प्रभावों का भी जिक्र किया गया है. यह महामारी कई मौजूदा बीमारियों के निदान और इलाज में रुकावट भी बनी है. गतिहीन जीवनशैली कोविड-19 महामारी के एक और दुष्प्रभाव के रूप में हमारे सामने आई जिसके लोग आदी हो गए हैं. कई लोग अभी भी इसके प्रभाव से जूझ रहे हैं जो कई और दुष्प्रभावों को दावत देता है.
क्या होती हैं क्रॉनिक डिसीस? क्रॉनिक डिसीस का मतलब ऐसी बीमारियां जो कम से कम एक साल या उससे अधिक समय तक रहती हैं और जिनके लिए लगातार इलाज की जरूरत होती है. डायबिटीड, कैंसर, हृदय रोग और किडनी डिसीस जैसी क्रॉनिक बीमारियां पूरी दुनिया में लोगों की मौतों का प्रमुख कारण हैं. विश्व स्वास्थ्य दिवस पर यहां हम आपको उन क्रॉनिक बीमारियों के बारे बताएंगे जो महामारी के बाद बढ़ रही हैं.
दिल्ली के शालीमार बाग स्थित फॉर्टिस हॉस्पिटल के इंटरनल मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट पवन कुमार गोयल ने एक अंग्रेजी अखबार को बताया, ''अगर हम आंकड़ों पर नजर डालें तो महामारी के बाद ब्लड प्रेशर, हृदय रोग और डायबिटीज जैसी खराब जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं. कोई सोच सकता है कि ऐसा क्यों हो रहा है. महामारी के दौर में लोग घर बैठे योग, प्राणायाम और व्यायाम कर रहे थे. सड़कों पर ना के बराबर ट्रैफिक था. अब सड़कें भर चुकी हैं और ट्रैफिक जाम की वजह से भी लोग एक-दूसरे को कोस रहे हैं. व्यवसाय फल-फूल रहे हैं लेकिन लोगों के बीच प्रतिस्पर्धा भी बढ़ रही है जो लोगों को हाई ब्लड प्रेशर का शिकार भी बना रही है. लोगों के पास व्यायाम या योग के लिए समय नहीं है और तनाव कम करने के लिए अनहेल्दी भोजन, धूम्रपान और शराब पी रहे हैं. कम शब्दों में कहें तो लाइफस्टाइल से जुड़े रोगों को पनपने के लिए एक बेहतरीन वातावरण है.''
हेल्थकेयर कंपनी लाइब्रेट के जनरल फिजिशियन ने पार्थ प्रजापति ने कहा, ''कोरोना ना केवल फेफड़ों को प्रभावित करता है बल्कि किडनी, हृदय और दिमाग को भी नुकसान पहुंचाता है. इससे कई मानसिक परेशानियां होती हैं. हार्ट अटैक, पैरालिसिस, किडनी की बीमारी कोरोना का दुष्प्रभाव हो सकती हैं. कोरोना की बीमारी हर उम्र के लोगों को होती है लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रभाव बुजुर्गों पर पड़ता है. महामारी ने क्रॉनिक डिसीस के निदान, उपचार और निगरानी की क्षमता में रुकावट पैदा की है जिसकी वजह से इन बीमारियों से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ रही है.''

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