
‘Sholay The Final Cut’: ठाकुर ही है असली ‘धुरंधर’, गब्बर ही खालिस ‘एनिमल’... इंडियन सिनेमा के धर्मग्रंथ का रिवीजन
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'शोले: द फाइनल कट' वो ऑरिजिनल क्लाइमेक्स लेकर आई है जो फिल्म के लिए पहले शूट किया गया था, फिर हटा दिया गया. 4K क्वालिटी में फिल्म को रिस्टोर किया गया है. इंडियन सिनेमा की एपिक फिल्म का ये नया वर्जन कैसा है, पढ़िए इस रिव्यू में.
‘ठाकुर साहब, शायद ही कोई ऐसा जेल हो जिसमें ये दोनों ना गए हों! ये वीरू है और ये जयदेव. दोनों के दोनों पक्के बदमाश. एक नंबर के चोर. छंटे हुए गुंडे हैं!' जेलर साहब, ठाकुर को चेतावनी दे पाते, उससे पहले मेरे पीछे बैठे आदमी ने एक सांस में पूरा डायलॉग बोल डाला. एक-एक शब्द बिल्कुल सटीक क्रम में.
‘शोले: द फाइनल कट’ की स्क्रीनिंग में ये सीन पूरी फिल्म में चला. फिल्म के डायलॉग दोहराने वाला सिर्फ एक ही आदमी नहीं था… ‘होली कब है, कब है होली’ तक आते-आते लगभग आधे लोग डायलॉग दोहराने लगे! मैटर कुछ वैसा है जैसा गांव में रामचरितमानस पाठ में होता है. किसी को मानस पूरी याद हो न हो ‘मंगल भवन अमंगल हारी’ सब गा लेते हैं. कुछ को एक आध चौपाई और याद होगी. कुछेक को पूरी रामचरितमानस ही कंठस्थ होती है.
‘शोले’ इंडियन सिनेमा की वही रामचरितमानस है. सिनेमा लवर्स ने पिछले 50 सालों में न जाने कितनी बार इसका पुनर्पाठ किया है. 5-10 बार वाले तो हजारों मिल जाएंगे, पचासों बार देखने वाले भी ना जाने कितने ही हैं. इंडियन सिनेमा के इस धर्मग्रंथ के पुनर्पाठ का नया मौका लेकर आई है ‘शोले: द फाइनल कट’.
नई क्वालिटी ने और दमदार बना दी है फिल्म फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन ने ‘शोले’ को 4K में रिस्टोर किया है. और यकीन मानिए ये महागाथा जैसे फिर से जिंदा हो गई है. ठाकुर के चेहरे पर दुख की गहराई अब और ज्यादा पढ़ने में आ रही है. बड़बड़ करती बसंती की आंखों की टिमटिमाहट और चमकदार हो गई है. वीरू की गर्दन-छाती-बाजू, रामगढ़ की पहाड़ियों से कम मजबूत नहीं हैं, ये अब बेहतर दिख रहा है.
अब ज्यादा क्लियर दिख रहा है कि पिस्तौल के ट्रिगर से जय की उंगलियां वैसे ही खेलती हैं, जैसे पियानो पर काबिल म्यूजिशियन की उंगलियां. जय के टॉस करने वाले सिक्के पर बनी क्वीन विक्टोरिया की तस्वीर अब और ज्यादा स्पष्ट है. गब्बर के चेहरे की सिलवटें और आंखों में वो भय अब और स्पष्ट दिख रहा है जो वो आपके लहू में भर देना चाहता है.
ये ‘शोले’ का ‘फाइनल-कट’ इसलिए है क्योंकि अबतक फिल्म में आपने जो क्लाइमेक्स देखा था, वो बदल गया है. जो ऑरिजिनल क्लाइमेक्स शूट किया गया था, वो अब फिर से जोड़ दिया गया है. ये हद से हद एक मिनट लंबी क्लिप होगी, मगर उससे पूरा खेल बदल जाता है. अब मैटर ज्यादा वायलेंट हो जाता है. ‘शोले: द फाइनल कट’ का क्लाइमेक्स देखने के बाद लगता है ठाकुर ही ओरिजिनल ‘धुरंधर’ था, गब्बर ही असली ‘एनिमल’ था. ये भी समझ आता है कि तब ये क्लाइमेक्स हटा के, वो वाला क्यों रखा गया होगा, जो अबतक लोगों ने देखा.

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