
RTI लगाने पर मिला 48 हजार पेज का जवाब, सरकार को ही हुआ ₹80 हजार का नुकसान
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MP अजब है, सबसे गजब है... मध्य प्रदेश टूरिज्म का यह एड-जिंगल भले ही पर्यटन के लिए बनाया गया हो, लेकिन हर विभाग पर लागू होता है. अबकी बार प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग का कुछ ऐसा ही कारनामा सामने आया है, जिससे सुनकर आप हैरान हो सकते हैं. दरअसल, स्वास्थ्य विभाग ने कोरोनाकाल में हुई खरीदारी की जानकारी एक आरटीआई कार्यकर्ता को 40 हजार पन्नों में उपलब्ध कराई है.
सूचना का अधिकार (RTI) की जानकारी लगभग कितने पन्नों में दी जा सकती है? शायद 100, 500 या 1000. लेकिन इंदौर के पास महू के रहने वाले एक शख्स को 48 से 50 हजार पन्नों में स्वास्थ्य विभाग ने जानकारी मुहैया कराई. जानकारी लेने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने याचिकाकर्ता को लोडिंग गाड़ी लेकर बुलाया था. याचिकाकर्ता अपनी एसयूवी सफारी गाड़ी से जानकारी लेने पहुंचे. पूरी गाड़ी पन्नों से भर गई.
आरटीआई कार्यकर्ता धर्मेंद्र शुक्ला ने बताया कि कोरोनाकाल में इंदौर जिला प्रशासन की ओर से की गई खरीदारी जानकारी सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई. इसमें वेंटीलेटर्स, मास्क, दवाइयां और स्वास्थ्य संबंधित अन्य चीजों की जानकारी चाही गई थी.
धर्मेंद्र शुक्ला ने बताया कि सूचना के अधिकार का नियम है कि संबंधित विभाग को 30 दिन के भीतर जानकारी उपलब्ध करानी होती है. यदि समय सीमा में कोई विभाग जानकारी नहीं देता है तो इसके ऊपर अधिकारी के पास प्रथम अपील लगानी होती है. लेकिन जब 32 दिन निकल गए तो फिर प्रथम अपील लगाई गई. वहां से आरटीआई की जानकारी देने के आदेश हुए और स्वास्थ्य विभाग से लगभग 15 से 20 दिन के बाद जानकारी उपलब्ध कराई गई. मतलब सूचना के अधिकार का आवेदन लगाने के 50 दिन बाद जानकारी दी गई.
स्वास्थ्य विभाग ने 50 हजार के आसपास पेज देकर जानकारी उपलब्ध कराई है. अब उसमें देख रहे हैं कि इसमें क्या-क्या भ्रष्टाचार हुआ है और क्या-क्या सामग्री खरीदारी की गई है? क्या खरीदारी में नियमों का पालन हुआ है?
सरकार का हुआ 80 रुपए का नुकसान
RTI कार्यकर्ता नेबताया कि आम आदमी अगर जानकारी के लिए आवेदन देता तो उसे 70 से 80 हजार रुपए खर्चने पड़ते. हालांकि, इस बार 2 रुपए प्रति पेज फोटो कॉपी के हिसाब से करीब 80 हजार का नुकसान सरकार का ही हुआ है. इसके पीछे की वजह यह है कि स्वास्थ्य विभाग ने प्रथम अपील लगाने के बाद यह जानकारी दी है. मतलब 30 दिन की समय सीमा समाप्त होने के बाद संबंधित विभाग को ही खुद से फोटोकॉपी करवाकर देनी होती है. अगर पहली बार में ही जानकारी देते तो आरटीआई लगाने वाले को फोटो कॉपी का खर्चा देना पड़ता.

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