
50 फीट ऊंचा मलबा, 'गोल्डन ऑवर' भी बीता... धराली में इन वजहों से मुश्किल हुआ रेस्क्यू
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उत्तराखंड के धाराली में आपदा के बाद लापता लोगों की तलाश में एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और सेना हाई-टेक उपकरणों का इस्तेमाल कर रही हैं. मलबा 40 से 50 फीट ऊंचा होने के कारण राहत कार्य बेहद चुनौतीपूर्ण है. स्निफर डॉग, ग्राउंड पेनिट्रेटिंग राडार, थर्मल ड्रोन और विक्टिम डिटेक्शन कैमरे से सर्च ऑपरेशन जारी है, लेकिन खराब मौसम मुश्किलें बढ़ा रहा है.
उत्तराखंड के धाराली में आपदा के बाद लापता लोगों की तलाश के लिए एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और सेना ने हाई-टेक तकनीकों का सहारा लिया है. मलबा 40 से 50 फीट ऊंचा होने से राहत और बचाव कार्य बेहद चुनौतीपूर्ण बन गया है. मार्ग संपर्क टूटने से भारी मशीनरी और संसाधन सीमित हैं, जिससे खुदाई और बहाली का काम धीमा है.
एसडीआरएफ ने स्निफर डॉग और विक्टिम डिटेक्शन कैमरे तैनात किए हैं, जो मलबे में दबे जीवित या मृत व्यक्तियों का पता लगा सकते हैं. कमांडेंट अर्पण यादवंशी ने बताया कि हर संभव ढांचे की जांच की जा रही है ताकि लापता लोगों के शव निकाले जा सकें. सेना भी अपने लापता जवानों की तलाश में स्निफर डॉग और थर्मल स्कैनर का उपयोग कर रही है, लेकिन नमी और गीला मलबा बड़ी बाधा है.
हाई-टेक तकनीकों से शवों की तलाश
एनडीआरएफ ने स्निफर डॉग, थर्मल ड्रोन, रेस्क्यू राडार और ग्राउंड पेनिट्रेटिंग राडार (जीपीआर) का इस्तेमाल शुरू किया है, जो मलबे के नीचे हड्डियों तक का पता लगा सकता है. लाइव डिटेक्टर-3 जैसे उपकरण भी लगाए गए हैं, जो सुनहरी घड़ी यानी गोल्डन ऑवर में सांस या हलचल का पता लगाने में मददगार होते हैं. एनडीआरएफ कमांडेंट सुधेश ने बताया कि आपदा के शुरुआती घंटे सबसे अहम होते हैं और इन तकनीकों से उस समय बचाव की संभावना बढ़ जाती है.
मौसम सर्च ऑपरेशन में बना बड़ी चुनौती
खराब मौसम और सुनहरी घड़ी बीत जाने के कारण सर्च ऑपरेशन और कठिन हो गया है. हर्षिल और धाराली की सड़क संपर्क टूटा हुआ है, लेकिन वायुसेना और सेना ने एयर कॉरिडोर बनाकर राहत सामग्री पहुंचाने और फंसे लोगों को निकालने का काम जारी रखा है.

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