हिंदुत्व ट्रोलिंग के सामने घुटने टेककर सेना ने अपने धर्मनिरपेक्ष आदर्शों को कमज़ोर किया है
The Wire
देश के सुरक्षा बल विविधता में एकता की रोशन मिसाल हैं. इसी एकता को नफ़रत और कट्टरता चाहने वाली ताक़तें पसंद नहीं करती हैं.
आजादी के बाद जवाहर लाल नेहरू और अन्य नेताओं ने भारत की विविधता का उत्सव मनाया और धर्मनिरपेक्षता की बात की. कुछ संस्थानों ने इसे वास्तव में व्यवहार में उतारने का काम किया. अन्यों के साथ सुरक्षा बलों, फिल्म उद्योग, रेलवे और क्रिकेट ने इस विविधिता से भरे देश को एक सूत्र में पिरोने का काम किया. ये धर्मनिरपेक्ष आदर्श के प्रतीक हैं.
रेल में सफर करते हुए आपको यह पता नहीं होता है कि आपकी बगल की सीट पर कौन आने वाला है और एक फिल्म यूनिट में सभी पृष्ठभूमि के लोग होते हैं. काफी भला-बुरा सुनने वाली हिंदी मसाला फिल्में धर्मनिरपेक्ष भारत की महानता का संदेश देती हैं.
कोई मुसलमान इनका हीरो हो सकता है, जिसकी प्रेमिका की भूमिका कोई हिंदू कर सकती है. इन बातों की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है. न कोई इनकी परवाह करता है- एक ऑडिटोरियम में, जिसकी बत्तियां बुझी होती हैं, हर कोई एक साथ तालियां बजाता है, हंसता है, रोता है और शोर मचाता है.
इसी तरह से देश के सुरक्षा बल विविधता में एकता की रोशन मिसाल हैं. सैनिक कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध करते हैं और हर त्योहार को प्रेम और सम्मान के साथ मनाते हैं जो एक लंबे समय से चली आ रही परंपरा है. लेकिन हिंदुत्व के संकीर्ण, धर्मांध पूर्वाग्रही दिमाग के हिसाब से यह विजातीय और घृणास्पद है और भारत के साथ जो गलत है, उसका प्रतीक है.