हरियाणा सरकार का खोरी गांव के निवासियों को बिना पुनर्वास किए निकालना क़ानूनन ग़लत है
The Wire
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट तौर पर यह कहने के बावजूद कि खोरी गांव के रहवासियों को बिना पुनर्वास किए बेदख़ल नहीं किया जा सकता, हरियाणा सरकार ने यहां की बस्ती के घरों को तोड़ डाला.
दिल्ली-हरियाणा की सीमा पर फरीदाबाद के खोरी गांव के लगभग एक लाख लोगों को जबरन बेदखल किए जाने का सामना करना पड़ा. उन्हें बार-बार ‘वन अतिक्रमण करने वाला’ बताया जाता रहा है. इस लेख में हम खोरी गांव के दो महत्वपूर्ण मामलों को परखेंगे, जो यह दर्शाते हैं कि सामूहिक रूप से निवासियों की बेदखली को हरियाणा सरकार कानून की अनुपालना के रूप में पेश नहीं कर सकती. चाहे बस्ती का वन भूमि के संदर्भ में कोई भी कानूनी दर्ज़ा क्यों न हो, खोरी गांव के निवासियों को कानूनन आवास का अधिकार है. ‘… आक्षेपित किए गए आदेश के विश्लेषण से स्पष्ट है कि 2010 से सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण या निवासियों के कब्ज़े के संबंध में अधिकारियों द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्ष पूरी तरह से विकृत और गुप्त प्रकृति के हैं … अधिकारियों द्वारा ज़ोर दिया जाना कि निवासी स्थलों पर अपना स्वामित्व या पट्टा साबित करने में विफल रहे हैं, पूरी तरह से संदर्भ से बाहर है, क्योंकि स्पष्ट रूप से ज़मीन पर्यटन विभाग के स्वामित्व में थी/है और याचिका दर्ज करने वाले लोग उस पर अनाधिकृत कब्ज़ा रखते थे/हैं. खोरी गांव बस्ती के शुरुआती निवासी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल से आए प्रवासी मजदूर थे, जो 1980 के समय में इस इलाके की खदानों में ज़्यादातर बंधुआ मज़दूरों के रूप में काम करते थे. वर्ष 2000 के बाद से जब यह खदानें बंद हो गईं, उन्हें कुछ और काम मिलने लगा, जैसे कि अनौपचारिक कार्यक्षेत्र में मज़दूरी और आस-पास के दफ़्तरों, होटलों, मॉल और रिहायशी कॉलोनियों में दिहाड़ी के काम. जाहिर तौर पर, कब्ज़े की अवधि और नीति के खंड (iii) के अंतर्गत उनकी पात्रता निर्धारित करने के लिए किया गया प्रयास एक तमाशा था/है. … प्रत्येक सदस्य को सुनवाई का अवसर दिया जाएगा और उनके दावों को व्यक्तिगत तौर पर निर्धारित किया जाएगा.’ 2010 में फरीदाबाद नगर निगम ने यह कहकर खोरी गांव के लोगों को ज़बरदस्ती बेदखल करने का प्रयास किया कि यह ज़मीन पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम (पीएलपीए) के अंतर्गत विनयमित है और बस्ती का निर्माण गैर-कानूनी है क्योंकि इन्हें वन नियमों के अंतर्गत मंज़ूरी प्राप्त नहीं है. निवासियों ने विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से चंडीगढ़ उच्च न्यायालय में केस दर्ज कर दिए और बिना पुनर्वास के उन्हें बेदखल किए जाने के खिलाफ रोक लगाए जाने की मांग की. वर्ष 2016 में, खोरी गांव कल्याण समिति (CWP 19910/2014) और खोरी गांव निवासी कल्याण संघ (CWP 19148/2010) द्वारा दर्ज की गई याचिकाओं में उच्च न्यायालय ने 10.02.2010 को दो विस्तृत आदेश दिए और हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण की नीति के अनुसार निवासियों का पुनर्वास करने को कहा.More Related News