हजारी प्रसाद द्विवेदी: ‘विशुद्ध संस्कृति सिर्फ बात की बात है, शुद्ध है केवल मनुष्य की दुर्दम जिजीविषा”
The Wire
हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसे विद्वान इसी भूभाग में पैदा हुए थे जो संस्कृति के नाम पर अभिमान करने के साथ उसमें छिपे अन्याय को भी पहचान सकते थे. इस संस्कृति के प्रति इतना मोह क्यों जो वास्तव में असंस्कृत है?
यह सब पढ़ और सोच रहा था कि किसी से ध्यान भंग किया: हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्मदिन आ पहुंचा है. नहीं, जन्मशती नहीं है, कोई अर्धशती या किसी भी प्रकार का ‘अमृत दिवस’ भी नहीं है. लेकिन लेखक की किताब तो असमय, अकारण ही पाठक उठा लेता है, वही उसका पुनर्जन्म है. कौन, किस चिंता से दबा हुआ, किस आशा की खोज में कोई किताब उठाता है, किसे पता? लेकिन लेखक अगर लेखक है, तो उसे शायद ही निराश करे. और वह भी तो उस पाठक के मन में फिर जी उठता है! जीवन के बीचोंबीच रहना, उस समय जब वह खतरनाक हो उठे, असली मनुष्य की पहचान है.जीवन से मनुष्य आदर चाहता है. प्रश्न यह है जो हजारी प्रसाद द्विवेदी पूछते हैं, क्या मनुष्य ने जीवन का पर्याप्त आदर किया है! क्या वह कायदे से,पूरा-पूरा जिया है? लेकिन जीने का मतलब ही क्या है? जीना क्या है?More Related News