सोनागाछी की कहानी, कोलकाता की इस 'बदनाम' गली को कैसे मिला ये नाम?
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सोनागाछी यानी सोने का पेड़. आखिर इस इलाके का नाम सोनागाछी कैसे पड़ा? तो क्या इस इलाके में सोने के पेड़ जैसा कुछ है? हम तो यही जानते हैं कि सोना निर्जीव वस्तु है. कीमती धातु है और इसका कोई पेड़ नहीं होता है, तो फिर शोभाबाजार के पास सोने का गाछ कहां से आया?
सोनागाछी शब्द आपके कानों में कई बार गूंजा होगा. कभी रसीली और चटपटी गप के रूप में...तो कभी दर्दभरी लड़ियों जैसी दुखांत कहानियों की तरह. यहां की 10 बाई 10 की खोलियों से कराह और कहकहों के स्वर एक साथ निकलते हैं. इन ध्वनियों के अपने-अपने मायने हैं. किसी के लिए ये खालिस मनोरंजन है, जहां रकम के बदले एक सौदा है...तो अगले ही पल ये जिल्लत और जिंदगी की कहानी है, जहां घोर अंधियारा है. न कोई सितारा है...न आफताब. नगमा निगार साहिर लुधियानवी सोनागाछी के इस विरोधाभास को फिल्म चांदी की दीवार के एक गीत में बड़ी तकलीफ के साथ पेश करते हैं. इस रचना में दुनिया से उनकी शिकायत है. मोहम्मद रफी इस गीत को जब स्वर देते हैं तो सोनागाछी अपनी रौ में अपनी पहचान के साथ सामने आ जाता है.15 मार्च को एक रेलवे अधिकारी और उसके नाबालिग बेटे की हत्या के बाद से आरोपी फरार हैं. पुलिस को 40 दिनों के बाद यह पता चला कि ये दोनों नेपाल और बांगलादेश के रास्ते देश से बाहर भागने की कोशिश में हैं. मोबाइल और एटीएम की मदद से इन दोनों का लोकेशन मिलने के बावजूद ये लोग पुलिस को कैसे चकमा दे रहे हैं, यह एक बड़ा सवाल है.
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