समलैंगिक विवाह: सुप्रीम कोर्ट बोला- विशेष विवाह अधिनियम के तहत 30 दिन का नोटिस ‘पितृसत्तात्मक’
The Wire
सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाहों को क़ानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है. इस दौरान विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत सार्वजनिक आपत्ति आमंत्रित करने वाले 30 दिनी नोटिस पर हुई चर्चा के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि यह अनिवार्य नोटिस ‘पितृसत्तात्मक’ है और ‘समाज के खुले हस्तक्षेप’ को बढ़ावा देता है.
नई दिल्ली: समलैंगिक विवाहों के लिए कानूनी मंजूरी की मांग करने वाली याचिकाओं पर लगातार तीसरे दिन गुरुवार (20 अप्रैल) को भी सुनवाई जारी रही. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत एक नियत विवाह के लिए सार्वजनिक आपत्तियों को आमंत्रित करने वाला 30 दिवसीय अनिवार्य नोटिस ‘पितृसत्तात्मक’ है और यह ‘समाज के खुले हस्तक्षेप’ को बढ़ावा देता है.
इंडियन एक्सप्रेस ने बार एंड बेंच के हवाले से इस संंबंध में जानकारी दी है.
अनिर्णायक शेष दलीलों के साथ भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ 24 अप्रैल को मामले पर सुनवाई फिर से शुरू करेगी. पीठ में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस. रवींद्र भट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली भी शामिल हैं.
इस दौरान जस्टिस भट ने कहा कि नोटिस प्रणाली ‘केवल पितृसत्ता पर आधारित थी’ और ‘ये कानून तब बनाए गए थे जब महिलाओं के पास कोई संस्था नहीं थी. सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘यह पुलिस अधीक्षक, जिला मजिस्ट्रेट आदि समेत समाज द्वारा हस्तक्षेप के लिए उन्हें खुला छोड़ देने जैसा है.’