
शांतिनिकेतन को मिला विश्व धरोहर का दर्जा, यहां आज भी पेड़ नीचे पढ़ते हैं छात्र, जानें खासियतें
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World Heritage Santiniketan: विश्वविरासत घोषित होने के बाद शांतिनिकेतन, भारत का 41वां विश्व धरोहर स्थल और दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे और सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान के बाद बंगाल का तीसरा विश्व धरोहर स्थल बन गया है.
Santiniketan in List of World Heritage 2023: करीब 122 साल पहले 5 छात्रों के साथ शुरू वह विश्वविद्यालय, जहां आज भी छात्रों को पेड़ के नीचे जमीन पर बैठकर पढ़ते देखा जा सकता है. दुनिया में आज उस विश्वविद्यालय को विश्वविरासत (World Heritage) का दर्जा दिया गया है. भारतीयों के लिए यह गौरव का क्षण है. एक दशक चले अभियान के बाद संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) ने शांतिनिकेतन को विश्व धरोहर के रूप में मान्यता दी है.
स्मारकों और स्थलों पर अंतर्राष्ट्रीय परिषद, संयुक्त राष्ट्र के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार निकाय की सिफारिश के बाद प्रसिद्ध कवि और दार्शनिक रवींद्रनाथ टैगोर के "शांति के निवास" को प्रतिष्ठित वैश्विक सूची में शामिल किया गया है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के लिए शांतिनिकेतन पर दस्तावेज तैयार करने वाले संरक्षण वास्तुकार मनीष चक्रवर्ती ने कहा था कि शांतिनिकेतन को एकमात्र जीवित विरासत विश्वविद्यालय के रूप में नामित किया गया था, जहां अभी भी पेड़ के नीचे खुली हवा में कक्षाएं आयोजित की जाती हैं. बताते चलें कि ASI यूनेस्को के लिए नामांकन करने के लिए नोडल प्राधिकरण है और एएसआई ने शांतिनिकेतन पर डोजियर पेरिस में संयुक्त राष्ट्र एजेंसी को भेजा था.
भारत का 41वां विश्व धरोहर स्थल बना शांतिनिकेतन विश्वविरासत घोषित होने के बाद शांतिनिकेतन, भारत का 41वां विश्व धरोहर स्थल और दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे और सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान के बाद बंगाल का तीसरा विश्व धरोहर स्थल बन गया है.
शांतिनिकेतन का इतिहास दरअसल, रवींद्रनाथ टैगोर के पिता महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर ने सन 1863 में 7 एकड़ जमीन पर एक आश्रम की स्थापना की थी जहां बाद में रवींद्रनाथ ने इस विश्वविद्यालय को स्थापित किया और इसे विज्ञान के साथ कला और संस्कृति की पढ़ाई का भी केन्द्र बनाया. रवींद्रनाथ टैगोर ने 1901 में ग्रामीण पश्चिम बंगाल में स्थापित, शांतिनिकेतन एक आवासीय विद्यालय और प्राचीन भारतीय परंपराओं और धार्मिक और सांस्कृतिक सीमाओं से परे मानवता की एकता की दृष्टि पर आधारित कला का केंद्र था. मानवता की एकता या "विश्व भारती" को मान्यता देते हुए 1921 में शांतिनिकेतन में एक 'विश्व विश्वविद्यालय' की स्थापना की गई थी. 20वीं सदी की शुरुआत के प्रचलित ब्रिटिश औपनिवेशिक वास्तुशिल्प अभिविन्यास और यूरोपीय आधुनिकतावाद से अलग, शांतिनिकेतन एक पैन-एशियाई आधुनिकता की ओर दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है, जो पूरे क्षेत्र की प्राचीन, मध्ययुगीन और लोक परंपराओं पर आधारित है.
शांतिनिकेतन की खास बातें सरकार द्वारा वित्त पोषित इस यूनिवर्सिटी से संबद्ध 10 उप-संस्थान भी हैं जो हायर एजुकेशन में अपने क्षेत्रों में उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध हैं. यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट, पोस्टग्रेजुएट और डॉक्टरेट स्तर के कोर्सेज़ कराती है. यहां दुनियाभर की किताबों की लाइब्रेरी भी है. शांतिनिकेतन की प्राकृतिक छटा देखने लायक है और यह देश-दुनिया के लिए पर्यटन का केन्द्र भी है. यहां त्योहारों को भी बड़े धूम-धाम से मनाने की परम्परा है और देशभर से लोग होली और दीपावली के मौके पर यहां की रौनक देखने आते हैं. अपने खानपान के लिए भी शांतिनिकेतन देशभर में जाना जाता है. यहां की फिशकरी पूरे बंगाल में लोकप्रिय है. कभी 5 छात्रों से शुरू हुए इस विश्वविद्यालय में आज 6 हजार से भी ज्यादा छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं.
बता दें कि विश्व धरोहर स्थल के लिए शांतिनिकेतन के नामांकन पर दस्तावेज पहली बार 2009 में वास्तुकार आभा नारायण लाम्बा और वास्तुकार मनीष चक्रवर्ती द्वारा तैयार किया गया था, लेकिन 2021 में ही एएसआई ने लांबा से संपर्क किया और उन्हें 10 दिनों में अंतिम डोजियर जमा करने के लिए कहा था.

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